ग्लूकोज व कार्बोहाइड्रेट की मात्रा कम होने से यह शुगर के मरीजों के लिए बहुत लाभदायक है। इसकी जांच
भी अनुसंधान केंद्रों पर हो चुकी है। ये किसान हैं राजकुमार राठौर, जिन्होंने गेहूं की किस्म ‘ए-10″ खोजी है। राठौर का कहना है बदलाव प्रकृति ने किया है।
इस किस्म की पैदावार के लिए किसी भी प्रकार के रसायनों का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। ऐसा किए जाने पर इसकी किस्म के नष्ट होने का खतरा है। राठौर ने सबसे पहले अपने यहां इस गेहूं का उपयोग किया। इसके आटे से बनी रोटी के इस्तेमाल से कुछ दिन में उनकी मां की शुगर कंट्रोल हो गई थी राठौर के अनुसार नई प्रजाति के इस गेहूं के बीजों की संख्या बढ़ाई और खेती शुरू की। अब इसका उपयोग देश-विदेश में भी किया जा रहा है। इसमें कई वैरायटी आधुनिक तरीके से तैयार हुई है और कुछ प्राकृतिक रूप से मिली हैं।
सरकार ने भी माना बदलाव
भारत सरकार भी इस बदलाव को मानती है। कॉलेज के सिलेबस में भी प्रकृति के कारण होने वाले बदलावों को पढ़ाया जाता है। वैज्ञानिक भी इस पर रिसर्च कर रहे हैं। केंद्र सरकार ने प्राकृतिक कारणों से होने वाले बदलाव पर नजर रखने और शोध करने के लिए प्रोटक्शन ऑफ प्लांट वैरायटीज एंड फार्मर्स राइट अथॉरिटी इंडिया (पीपीवीएफआर) एक्ट भी बना दिया है।
नई खोज करने वाले किसान के अधिकार इस अधिनियम से सुरक्षित रहेंगे। इसके लिए सरकार ने फंड का भी
प्रावधान रखा हऐसे की खोज राठौर ने बताया कि उनके पिता बायोडायवर्सिटी को लेकर प्रयोग करते
रहते थे। करीब 6 साल पहले अपने खेत में गेहूं बोया था। सूर्यग्रहण के कुछ दिन बाद खेत में कुछ पौधों की वृद्धि
असामान्य देखकर उन पर विशेष नजर रखी गई। जब उन पौधों से बीज निकले तो उन्हें अलग इलाकों में बोकर कुछ और बीज तैयार किए गए। जब उनकी जांच कराई गई तो उनमें ग्लूकोज और कार्बोहाइड्रेट की मात्रा सामान्य गेहूं से काफी कम मिली। इसके बाद इसे शुगर फ्री गेहूं नाम दिया गया।
इसलिए होता है बदलाव
कृषि कॉलेज के अधिष्ठाता डॉ. अशोक कृष्णा ने बताया शुगर फ्री (ए-10) गेहूं की नई प्रजाति का जन्म प्राकृतिक बदलाव के कारण होना संभव है। ओजोन परत सूर्य की पराबैंगनी किरणों से जीवजंतुओं की रक्षा करती है, लेकिन ग्रहण के दौरान ये पौधों व जीव-जंतुओं पर असर छोड़ जाती हैं। इस कारण कई बदलाव होते हैं। अब राजा रमन्नाा कैट के साथ मिलकर प्राकृतिक बदलाव के कारण फसलों पर होने वाले प्रभाव का अध्ययन किया जाएगा। कृषि विज्ञान केंद्रों पर भी रिसर्च किया जा रहा है।