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इंदौर कलेक्टर के खेद जताने के बाद डॉक्टर्स की हड़ताल समाप्त, जनिये पूरा मामला

इंदौर । तीन दिन से जारी कलेक्टर-डॉक्टर विवाद आखिरकार अपने अंजाम तक पहुंच गया है।

इंदौर । तीन दिन से जारी कलेक्टर-डॉक्टर विवाद आखिरकार अपने अंजाम तक पहुंच गया है। दरअसल, दो दिन पहले इंदौर के चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग की प्रभारी सीएमएचओ (CMHO) रह चुकी डॉ. पूर्णिमा गाडरिया ने कलेक्टर मनीष सिंह के व्यवहार को अमर्यादित बताकर अपनी सरकारी नौकरी से त्यागपत्र दे दिया था, जिसके बाद डॉक्टर और नर्सिंग से जुड़े 14 एसोसिएशन महिला डॉक्टर के पक्ष में आ गए थे। जिसके बाद गुरुवार को सभी डॉक्टर्स के सभी संगठनों ने डॉ. पूर्णिमा गाडरिया के समर्थन में उतरकर सामूहिक रूप से हड़ताल करने का फैसला लिया था। हालांकि इस बीच कांग्रेस (Congress) नेताओं के सामने भी डॉ. पूर्णिमा गाडरिया रो पड़ी थी और उन्होंने आपबीती कांग्रेसी नेताओं को सुनाई थी। वही अब इस विवाद का आखिरकार निपटारा हो चूका है, और डॉक्टर पूर्णिमा ने वापस अपने कार्य आप लौटने का फैसला किया है।

इधर, शुक्रवार से डॉक्टर्स की प्रस्तावित हड़ताल को लेकर प्रदेश भर में हड़कंप मच गया था और हर कोई बस ये जानना चाह रहा था कोविड संकट के दौर में यदि डॉक्टर कामबंद हड़ताल पर चले गए तो मरीजो का क्या होगा। वही, शुक्रवार सुबह से ही प्रभारी मंत्री तुलसी सिलावट (Tulsi Silawat) सांसद शंकर लालवानी (Shankar Lalwani) बीजेपी विधायक और कमिश्नर पवन कुमार शर्मा ने इस पूरे मामले को लेकर एक बड़ी बैठक ली। जिसमे कलेक्टर मनीष सिंह और डॉ. पूर्णिमा गाडरिया के पक्ष को सुना गया। वही संभावित हड़ताल की आशंका के चलते प्रभारी मंत्री बैठक से पहले ही मामले में सुलह कराने के मूड में थे। शुक्रवार को बकायदा बैठक हुई और डॉक्टर्स व प्रशासनिक अधिकारी आमने सामने थे। बैठक में आखिरकार सभी पक्षों को सुनने के बाद सामूहिक रूप से फैसला लिया गया कि जो हुआ है उसे भूलकर सिर्फ कोरोना संकट को ध्यान में रखकर लोगो के स्वास्थ्य की रक्षा करनी है। वही सरकार ने डॉ. पूर्णिमा गाडरिया के त्यागपत्र नामंजूर कर दिया और साथ ही जिन बातों को लेकर विवाद हुआ था उन बातों को लेकर इंदौर कलेक्टर मनीष सिंह ने खेद भी व्यक्त किया जिसके बाद सभी संगठनों ने प्रस्तावित हड़ताल भी वापस ले ली।

डॉक्टर्स और प्रशासन के बीच हुए समझौते के बाद प्रभारी मंत्री तुलसी सिलावट ने बताया है कि उन्होंने चिकित्सकों का पक्ष सुना और सभी मुद्दों पर विस्तृत संवाद किया। जन प्रतिनिधियों और वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों की उपस्थिति में सर्वसम्मति से स्वास्थ्य अधिकारियों ने हड़ताल नहीं करने का निर्णय लिया है साथ ही यह भी निर्णय हुआ है कि डॉक्टर पूर्णिमा गड़रिया का त्यागपत्र शासन स्तर से स्वीकार नहीं किया जाएगा। मंत्री सिलावट ने कोरोना के इस कठिन समय को देखते हुए डॉक्टरों और अन्य स्वास्थ्य कर्मियों द्वारा हड़ताल नहीं करने के निर्णय पर उन्हें साधुवाद दिया है।

डॉ. पूर्णिमा बहुत ही मेहनती- इंदौर कलेक्टर मनीष सिंह
वही कलेक्टर मनीष सिंह ने खेद व्यक्त कर कहा कि डॉ. पूर्णिमा बहुत ही मेहनती है। वही प्रशासनिक कमांड होने के चलते उन्हें कई दफा टीम को मोटिवेट करना पड़ता है तो कभी डांटना Bही पड़ता है जो काम का एक हिस्सा है। फिलहाल, हमारा फोकस सिर्फ इस बात पर है कि हमे कोरोना के खिलाफ लड़ना है वही उन्होंने कहा कि प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग ये सब हम लोगो का एक परिवार है वही उन्होंने कहा कि हमे किसी भी बात को प्रतिष्ठा का प्रश्न नही बनाना है और हमे जनता के लिए काम करना है।

डॉ. पूर्णिमा गाडरिया नहीं चाहती माफी
वही डॉ. पूर्णिमा गाडरिया भी काम पर लौट आई और उन्होंने मीडिया को बताया कि कलेक्टर सर से वो माफी नहीं मंगवाना चाहती है उन्होंने खेद व्यक्त किया ये ही काफी है और संगठन ने फैसला लिया है कि लोगों के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए हड़ताल नहीं की जाएगी और सब मिलकर काम करेंगे। वही एक पत्रकार के द्वारा जब पूछा गया कि 3 दिन बाद अचानक आपको मरीजों की चिंता कैसे होने लगी, आप पर कुछ दबाव है ? तो इस सवाल पर उन्होंने कहा मैंने अपना फैसला ले लिया है मेरे साथ जो संगठन आए थे हमने विचार किया कि हमें हमारे मरीजों के स्वास्थ्य का ध्यान रखना है इस पर विचार करते हुए सबकी सहमति के साथ हमने वापस आने का फैसला लिया है। वहीं जब उनसे पूछा गया कि आपके द्वारा लगाए गए कलेक्टर पर आरोप झूठे माने जाए तो उसपर डॉ पूर्णिमा का कहना था कि कि मैंने आरोप लगाया था जिस पर उन्होंने खेद व्यक्त किया है और उन्होंने कहा है कि वह आगे से इस चीज का ध्यान रखेंगे।

बतादें कि डॉक्टर्स के संगठन ने कलेक्टर मनीष सिंह को हटाने की मांग के साथ चेतावनी दी थी लेकिन सरकार और प्रशासन के आला अधिकारियों के हस्तक्षेप के बाद एक बार फिर डॉक्टर मान गए और हड़ताल वापस ले ली गई है वही डॉ. पूर्णिमा गाडरिया के इस्तीफे को भी नामंजूर कर दिया गया है। जो एक तरह से मरीजो के लिहाज से एक विवाद का सुखद अंत कहा जा सकता है।

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