कटनी। परम वैभव का प्राप्ति का 16 दिवसीय महालक्ष्मी व्रत अगले दो दिनों तक मनाया जाएगा। वैसे इस व्रत का उद्दापन 13 सितंबर को होगा। ऐरावत में सवार महालक्ष्मी की पूजा अर्चना घर घर की जाएगी। त्योहारों और व्रतों में सिर्फ यही ऐसा व्रत है जो पितृपक्ष के दौरान किया जाता है। माना जाता है कि महालक्ष्मी व्रत रखने पर धनधान्य की प्राप्ति होती है। इस वर्ष महालक्ष्मी व्रत 29 अगस्त भाद्रपद के शुक्लपक्ष की अष्टमी को मनाया गया। यह व्रत 16 दिन तक आश्विन कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि तक चलता है। माना जाता है कि सोलह दिन तक मां लक्ष्मी की विधि विधान से पूजा अर्चना करता है। उसे सात जन्मों तक अखण्ड लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। अगर आप पूरे सोलह दिनों तक इस व्रत को करने में असमर्थ हैं, वो सोलह दिनों में से केवल 3 दिन के लिये यह व्रत कर सकते हैं। लेकिन ये तीन व्रत पहले, मध्य और आखिर में किये जाते हैं। यानी इन सोलह दिनों में से पहले दिन, आठवें दिन और आखिरी दिन करना चाहिए। पहला व्रत 29 अगस्त को था। आठवां दिन 5 सितम्बर और आखिरी व तीसरा व्रत 13 सितम्बर को है। जो सोलह दिवसीय व्रत करने में असमर्थ हैं, वे तीन दिन व्रत करके भी महालक्ष्मी की कृपा पा सकते हैं।
बाजार में फिर चहल पहल
महालक्ष्मी व्रत को लेकर शहर में चहल पहल दिखने लगी है। ऐरावत भी बाजार में बिकने आ गये हैं। माना जाता है कि महालक्ष्मी पर्व पर माता लक्ष्मी ऐरावत पर सवार होकर आती हैं। ऐरावत की पूजा अर्चना का भी विधान है।
क्या है कथा
महालक्ष्मी व्रत पौराणिक काल से मनाया जा रहा है। शास्त्रानुसार महाभारत काल में जब महालक्ष्मी पर्व आया। उस समय हस्तिनापुर की महारानी गांधारी ने देवी कुन्ती को छोड़कर नगर की सभी स्त्रियों को पूजन का निमंत्रण दिया। गांधारी के 100 कौरव पुत्रो ने बहुत सी मिट्टी लाकर सुंदर हाथी बनाया व उसे महल के मध्य स्थापित किया। जब सभी स्त्रियां पूजन हेतु गांधारी के महल में जाने लगी। इस पर देवी कुन्ती बड़ी उदास हो गई। इस पर अर्जुन ने कुंती से कहा हे माता! आप लक्ष्मी पूजन की तैयारी करें, मैं आपके लिए जीवित हाथी लाता हूं। अर्जुन अपने पिता इंद्र से स्वर्गलोक जाकर ऐरावत हाथी ले आए। कुन्ती ने सप्रेम पूजन किया। जब गांधारी व कौरवों समेत सभी ने सुना कि कुन्ती के यहां स्वयं एरावत आए हैं तो सभी ने कुंती से क्षमा मांगकर गजलक्ष्मी के ऐरावत का पूजन किया। शास्त्रनुसार इस व्रत पर महालक्ष्मी को 16 पकवानों का भोग लगाया जाता है। सोलह बोल की कथा 16 बार कहे जाने का विधान है व कथा के बाद चावल या गेहूं छोड़े जाते हैं।