दोनों परिवारों की दुश्मनी में अब तक कई लोग जान गवां चुके हैं। दुश्मनी भी ऐसी रही कि दोनों के परिवार जब भी सामने बोली के बजाए गोली से बात होती, लेकिन सोमवार को रक्षाबंधन का दिन ऐसी घड़ी लाया जब रेशम के धागे से दुश्मनी की कड़वाहट हमेशा-हमेशा के लिए दूर हो गई। दोनों ही परिवारों की दुश्मनी पुलिस के लिए भी सिरदर्द थी। ऐसे में अब पुलिस को भी राहत मिलेगी।
दोनों परिवार की दुश्मनी में लालजी सिंह परिवार के अक्षयसिंह भदौरिया की हत्या हुई। संघर्ष बढ़ा तो चिम्मन सिंह परिवार के नाथूसिंह, जुगराज सिंह, भगवानसिंह को गोली लगी। लालजी परिवार में राकेश उर्फ र-े भदौरिया को गोली लगी।
वर्ष 2008 में लालजी सिंह पक्ष के जयसिंह भदौरिया को गोली लगी। महेश और सुरेश दोनों सगे भाइयों की इसी संघर्ष में जान गई। दुश्मनी के कारण लालजी पक्ष की 300 बीघा जमीन बंजर पड़ी है। दोनों पक्षों के बच्चों की शिक्षा भी बाधित हो रही थी।
दोनों पक्षों को हुई सजा
लालजी सिंह और चिम्मन सिंह के पक्ष को 28 जुलाई 2017 को भिंड न्यायालय ने हत्या के प्रयास के मामले में लालजी सिंह, राकेश रक
के और जितेंद्र सिंह को सजा सुनाई। दूसरे पक्ष से चिम्मनसिंह, रूपसिंह, बाबू सिंह, डब्बू उर्फ जुगराज, राजकुमार, दिनेश, फेरन सिंह, महेंद्रसिंह, दिलीपसिंह, शिवकुमार उर्फ मोनू को 7-7 वर्ष की सजा सुनाई है।
दोनों ही पक्षों ने जेल के मंदिर में दुश्मनी को भूलकर दोस्ती निभाने की शपथ ली है। इन परिवारों के बीच समझौता कराने के लिए 2010 में आईजी एसके झा, एसपी राजेंद्र प्रसाद और एएसपी जगत राजपूत ने कोशिश की थी, लेकिन तब दोनों परिवारों ने समझौता नहीं किया था।
बहनों ने राखी बांध लिया वचन
45 साल पुरानी दुश्मनी को खत्म कराने में दोनों पक्षों की बहनों की भूमिका रही। बाराकलां से जेल में भाई लालजी सिंह भदौरिया को राखी बांधने पहुंची बहन सरोज देवी ने पहले चिम्मन सिंह को राखी बांधी। एंडोरी से चिम्मन सिंह को राखी बांधने पहुंची विद्यावती देवी ने अपने भाई से पहले लालजी सिंह भदौरिया को राखी बांधी। राखी के साथ ही दोनों बहनों ने भाइयों से एकता का वचन लिया।