“मैं 45 महीने से नज़रबंद हूं, आज भी मेरा घर मेरी हद है, बाहर पुलिस मौजूद है. मैं प्रवर्तन निदेशालय के सामने किस तरह हाज़िर हो सकता था?” ये सवाल के जवाब में सवाल है कश्मीरी अलगाववादी नेता शब्बीर शाह का.
मैंने शब्बीर शाह से सवाल किया था उस आरोप के बारे में कि उन्हें हवाला से आतंकवादी गतिविधियों को बढावा देने के लिए पैसे मिलते थे और प्रवर्तन निदेशालय के ज़रिए बार-बार बुलाए जाने के बावजूद भी वो हाज़िर नहीं हुए, जिसके बाद दिल्ली की एक अदालत ने उनके ख़िलाफ़ ग़ैर-ज़मानती वारंट जारी किया है.
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक़, साल 2005 में दिल्ली पुलिस ने मोहम्मद असलम वानी नाम के हवाला डीलर को 63 लाख रुपयों के साथ गिरफ़्तार किया था.
वानी के मुताबिक़ इसमें से 50 लाख रुपए शाह और 10 लाख जैश-ए-मोहम्मद के एरिया कमांडर अबू बक़र को मिलने थे. बाक़ी उसका कमीशन था.
वानी ने बताया कि उसके माध्यम से शब्बीर शाह को 2.25 करोड़ रूपए मिले थे. शाह के ख़िलाफ़ मनी लाउंड्रिंग क़ानून में मुक़दमा दर्ज है.
शब्बीर शाह पूरे मामले को राजनीतिक बताते हैं और कहते हैं कि भारत सरकार ये बहुत ख़तरनाक़ खेल खेल रही है और न सिर्फ़ उनके साथ बल्कि दूसरे कश्मीरी अलगाववादी नेताओं जैसे गिलानी को भी बदनाम करने की कोशिश की जा रही है.
शब्बीर शाह का कहना है कि उन्हें महज़ तीन समन
भेजे गए और उन्होंने तीनों का जवाब दिया है.
भेजे गए और उन्होंने तीनों का जवाब दिया है.
शाह का कहना है, “कश्मीर मसले का राजनीतिक हल ढ़ूंढना ख़तरनाक़ हो सकता है क्योंकि इससे लोगों का भरोसा इस प्रक्रिया में कम होगा और वो हथियार उठाने को मजबूर होंगे.”