पश्चिम बंगाल में आखिरी चरण की वोटिंग खत्म होने के बाद एग्जिट पोल के नतीजे आ गए हैं। बंगाल के साथ तमिलनाडु, असम, केरल और पुड्डुचेरी की विधानसभा चुनने के लिए पिछले दो महीने में मतदान हुआ है। इनमें से सबसे ज्यादा चर्चित बंगाल रहा है। यहां भाजपा और तृणमूल में सीधी टक्कर रही। बंगाल के लिए आए 5 एग्जिट पोल में से 4 में ममता बनर्जी को स्पष्ट बहुमत मिलने का अनुमान जाहिर किया गया है। केवल एक में भाजपा सत्ता के करीब दिखाई दे रही है। लेकिन, रुझानों में ममता को सीटों का नुकसान तय दिखाई दे रहा है।
5 राज्यों के एग्जिट पोल…
1. बंगाल
बंगाल में इस बार भाजपा ने 294 में से 293 सीटों पर चुनाव लड़ा। 1 सीट उसने सुदेश महतो की ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन पार्टी को दी। पिछली बार यहां भाजपा ने गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के साथ चुनाव लड़ा था। इस बार यह GJM तृणमूल के साथ है। तृणमूल 290 और GJM 3 सीटों पर चुनाव में उतरा। 1 सीट निर्दलीय को दी गई।
2. तमिलनाडु
यहां पहली बार जयललिता और करुणानिधि के बगैर विधानसभा चुनाव हुए। सत्ता में अन्नाद्रमुक है। वह 234 सीटों में से 179 पर और भाजपा 20 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। बाकी सीटें अन्य दलों को दी हैं। वहीं, द्रमुक 173 और कांग्रेस 25 सीटों पर चुनाव लड़ रही है।
3. असम
असम में पिछली बार सत्ता में आई भाजपा से बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट अलग हो गया है। वह इस बार कांग्रेस और लेफ्ट के साथ मैदान में है। वहीं, भाजपा, असम गण परिषद और UPLL एक साथ चुनाव लड़ रहे हैं। 126 सीटों में से भाजपा ने 92 और कांग्रेस ने 94 सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं।
4. केरल
बंगाल में कांग्रेस और लेफ्ट मिलकर चुनाव लड़ते हैं, जबकि केरल में वे एक-दूसरे के विरोध में रहते हैं। यहां अभी लेफ्ट की अगुआई वाले LDF की सरकार है। कांग्रेस इसका हिस्सा नहीं है। कांग्रेस की अगुआई वाला UDF यहां विपक्षी गठबंधन है। वहीं, भाजपा ने इस बार 140 में से 113 सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं।
5. पुडुचेरी
यहां कांग्रेस सत्ता में है। इस बार वह 30 सीटों में से 14 और द्रमुक 13 सीटों पर लड़ रही है। उधर, भाजपा 9 और ऑल इंडिया एनआर कांग्रेस 16 सीटों पर मैदान में है।
कई बार सीटों को लेकर एग्जिट पोल के अनुमान सटीक नहीं होते
- पिछले 5 लोकसभा चुनाव यानी 1999 से लेकर अब तक 2019 तक 37 बड़े एग्जिट पोल आए, लेकिन करीब 90% अनुमान गलत साबित हुए।
- 1999 में हुए चुनाव में ज्यादातर एग्जिट पोल्स ने NDA की बड़ी जीत दिखाई थी। उन्होंने NDA को 315 से ज्यादा सीट दी थीं। नतीजों के बाद NDA को 296 सीटें मिली थीं।
- 2004 में एग्जिट पोल पूरी तरह से फेल साबित हुए। अनुमानों में दावा किया गया था कि कांग्रेस की वापसी नहीं हो रही। सभी ने भाजपा को बहुमत मिलता दिखाया था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। NDA को 200 सीट भी नहीं मिल सकीं। इसके बाद कांग्रेस ने सपा और बसपा के साथ मिलकर केंद्र में सरकार बनाई।
- 2009 में भी एजेंसियों ने UPA को 199 और NDA को 197 सीटें मिलने के कयास लगाए गए थे, लेकिन UPA ने 262 सीटें हासिल की थीं। NDA 159 सीटों पर सिमटकर रह गया था।
2014 और 2019 में सत्ता का अनुमान सही साबित हुआ
- 2014 में एग्जिट पोल्स ने NDA को बहुमत मिलता दिखाया था। एक एजेंसी ने भाजपा को 291 और NDA को 340 सीटें मिलने का कयास लगाया था।
- नतीजा, अनुमान के काफी करीब रहा। भाजपा को 282 और NDA को 336 सीटें मिलीं।
- 2019 के लोकसभा चुनाव की बात करें तो 10 एग्जिट पोल्स में NDA को दी गई सीटों का औसत 304 था। यानी NDA को दोबारा सत्ता मिलने का अनुमान ठीक था, लेकिन यहां भी सीटों के मामले में अनुमान गड़बड़ हो गए। नतीजों में NDA की बजाय अकेले भाजपा को 303 सीटें मिलीं। NDA के खाते में 351 सीटें आईं।
- पिछले साल नवंबर में बिहार के विधानसभा चुनाव के वक्त भास्कर का एग्जिट पोल सबसे सटीक रहा था। भास्कर ने NDA को 120 से 127 सीटें मिलने का अनुमान जताया था। नतीजों में NDA को 125 सीटें मिलीं। जबकि, ज्यादातर चैनलों के एग्जिट पोल में महागठबंधन की सरकार बनने का अनुमान जताया गया था।
एग्जिट पोल्स का इतिहास
- भारत में 1960 में एग्जिट पोल का खाका सेंटर फॉर स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटी (CSDS) ने खींचा था। हालांकि, मीडिया में 1980 के दौर में पहला पोल सर्वे हुआ। उस समय पत्रकार प्रणय रॉय ने मतदाताओं की नब्ज टटोलने की कोशिश की थी। उनके साथ चुनाव विश्लेषक डेविड बटलर भी थे।
- दूरदर्शन ने CSDS के साथ 1996 में एग्जिट पोल शुरू किया। 1998 के चुनाव में लगभग सभी चैनलों ने एग्जिट पोल किए थे।
- आरपी एक्ट, 1951 का सेक्शन 126 मतदान के पहले एग्जिट पोल सार्वजनिक करने की अनुमति नहीं देता। आखिरी दिन की वोटिंग के बाद ही एग्जिट पोल दिखाए जा सकते हैं।