विघ्नहर्ता गणेश जब विध्नकर्ता हो जाएं, तो क्या होगा। जाहिर है, उन्हें इसकी सजा मिलेगी। मगर, जब गणेश भाई ने उन्हें सजा दी, तो उनका एक दांत ही तोड़ दिया। भविष्य पुराण में कहा गया है कि एक बार कुमार कार्तिकेय स्त्री पुरुषों के श्रेष्ठ लक्षणों पर ग्रंथ लिख रहे थे। मगर, गणेशजी इस काम में इतना विघ्न डाल रहे थे कि क्रोधित होकर कार्तिकेय ने गणेश जी का एक दांत ही तोड़ दिया।
भगवान शिव के कहने पर कार्तिकेय ने गणेश जी को उनका टूटा दांत तो वापस कर दिया, लेकिन एक शाप भी दे दिया। कार्तिकेय ने कहा कि गणेश यदि अपने टूटे हुए दांत को खुद से अलग करते हैं, तो तो टूटा दांत उन्हें भस्म कर देगा। फिर यह गणेशजी की मजबूरी हो गई कि वह अपना टूटा दांत हमेशा साथ में लिए रहते हैं।
महाभारत लिखने को तोड़ा दांत
कहा तो यह भी जाता है कि महभारत लिखने के लिए गणेशजी को लेखनी की जरूरत थी। गणेशजी ने अपना एक दांत तोड़कर उसे ही लेखनी बना लिया। इसीलिए उन्होंने महर्षि वेदव्यास के सामने शर्त रखी थी कि उनकी लेखनी यदि रुक गई, तो वह महाभारत नहीं लिखेंगे। ऐसे में वेदव्यास भी बीच-बीच में ऐसी चौपाइयां बोलते थे, जिन्हें समझने में गजानन को समय लगता था और इस दौरान वह नई चौपाइयां सोच लेते थे।
परशुराम से युद्ध में टूटा दांत
एक बार शिव जी से मिलने के लिए भगवान परशुराम कैलाश आए, लेकिन द्वार पर खड़े गणेश ने उन्हें अंदर जाने से रोक दिया। परशुराम के बार-बार विनती करने पर भी गणेशजी नहीं माने। अंत में परशुराम ने गणेश जी को युद्ध के लिए ललकारा। इस दौरान परशुराम के फरसे के वार से गणेश जी का एक दांत टूट गया और वह एक दंत कहलाए।
असुर का वध करने के लिए तोड़ा दांत
एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार, गजमुखासुर नाम के एक असुर को यह वरदान मिला था कि वह किसी अस्त्र-शस्त्र से नहीं मरेगा। ऐसे में वह खुद को अजेय और अमर समझकर देवताओं और ऋषियों को परेशान करने लगा। तब गणेशजी ने अपनी सूझ-बूझ का इस्तेमाल करते हुए गममुखासुर को वश में करने के लिए अपना एक दांत स्वयं तोड़ लिया।