एम्स पटना में सौ से अधिक लोगों की जांच में पाया गया कि 40 फीसद लोगों में कोरोना वायरस से लड़ने वाला एंटीबाडी नहीं बनी है। पटना एम्स ब्लड बैंक की प्रभारी और इस संबंध में शोध करने वालीं डा. नेहा सिंह सुझाव दे रही हैं कि लोगों को वैक्सीन की दूसरी डोज के 28 दिन बाद एंटीबॉडी जांच कराने का सुझाव दिया जाए।
यदि उनमें एंटीबाडी नहीं है तो बचाव के लिए उन्हें दूसरी कंपनी की कोरोना वैक्सीन की दोनों डोज लेनी चाहिए। कोरोना से सुरक्षा के लिए अब ऐसा उपाय करना होगा। डा. नेहा सिंह ने बताया कि कोवैक्सीन की दोनों डोज लेने के बाद रक्तदान करने आए 100 से अधिक लोगों की एंटीबाडी जांच कराई गई थी।
इसमें वैक्सीन की दोनों डोज लेने के एक माह बाद भी सभी में एंटीबाडी नहीं मिली। इनमें से 40 फीसद लोग ऐसे थे, जिनमें एंटीबाडी का निर्माण बिल्कुल नहीं हुआ था। ऐसे लोगों की मालीक्युलर जेनेटिक जांच कराकर इसके कारणों का पता किया जा रहा है। एक महीने में अध्ययन पूरा हो जाएगा, तो और स्पष्ट तौर पर इस बारे में कहा जा सकता है। डा. नेहा ने बताया कि दूसरी डोज के अधिकतम 28 दिन शरीर में कोरोना से लड़ने वाला एंटीबाडी विकसित हो जाना चाहिए। यदि किसी व्यक्ति में एक कंपनी की कोरोना वैक्सीन लेने के बाद एंटीबाडी नहीं बनती हैं तो वे इसके बाद दूसरी कंपनी की कोई वैक्सीन लेकर सुरक्षा प्राप्त कर सकते हैं।
इस संबंध में स्पष्ट गाइडलाइन बनाने की जरूरत है। डा. नेहा ने बताया कि जांच के क्रम में पाया गया कि जो लोग पहले कोरोना पाजिटिव हो चुके हैं, वैक्सीन की दो डोज लेने के बाद उनमें एंटीबाडी टाइटर बहुत अच्छा है। वहीं जो लोग संक्रमित नहीं हुए हैं, उनमें वैक्सीन की दोनों डोज लेने के बावजूद कम मात्रा में एंटीबाडी बनी है। एंटीबॉडी जांच में दो चीजें देखी जाती हैं- गुणवत्ता और मात्रा। क्वांटिटेटिव किट से पता चलता है कि शरीर में एंटीबॉडी की मात्रा कितनी है। वहीं क्वॉलिटेटिव से पता चलता है कि शरीर में एंटीबॉडी है भी कि नहीं।