भोपाल। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के दौरे से ठीक एक दिन पहले आए मध्यप्रदेश निकाय चुनाव के परिणामों ने सूबे के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की मुश्किलें थोड़ी बढ़ा दी हैं। बाजी मारने में भाजपा बेशक कामयाब रही है मगर परिणाम जता रहे हैं कि शिवराज की चमक फीकी हुई है।
पार्टी ने सूबे के 43 निकायों में 26 पर सफलता हासिल की है। सूबे में मृत पड़ी कांग्रेस पार्टी 6 निकायों के इजाफे के साथ कुल 14 निकायों पर कब्जा जमाने में कामयाब रही है। और 3 निकायों में निर्दलियों की जीत हुई है। पार्टी की जीत के बावजूद यह परिणाम शिवराज के लिए मुश्किलें पैदा करने वाले इसलिए हैं कि किसान आंदोलन के शुरूआत की केंद्र बने मंदसौर की सभी 3 निकायों पर भाजपा को मात खानी पड़ी थी। जबकि शिवराज की छवि पूरे देश में किसान हितैषी नेता के रूप में रही है। इसके अलावा शिवराज के अपने गृह जिले में भी भाजपा को हार झेलनी पड़ी है।
यही वजह है कि तीन दिवसीय दौरे पर मध्यप्रदेश जा रहे शाह निकाय चुनाव के परिणामों पर विस्तार से चर्चा कर आगे की रणनीति को अंजाम देंगे। उल्लेखनीय है कि 18 अगस्त से शाह मध्यप्रदेश के तीन दिवसीय दौरे पर जा रहे हैं। ताकि लोकसभा चुनाव से पहले सूबे के संगठन के पेंच कस सकें। पार्टी की मुश्किलें यह हैं कि अगले वर्ष अंत में प्रदेश विधानसभा के चुनाव भी होने हैं।
सूबे में वर्ष 2003 से भाजपा की सरकार है और शिवराज को भी मुख्यमंत्री पद पर बतौर 12 वर्ष पूरे हो गए हैं। बीते दिनों प्रदेश में हुए किसान आंदोलन और किसानों के मौत की घटना ने भी शिवराज सरकार की कलई खोली थी। हालांकि शिवराज की कम हो रही चमक के सवाल पर प्रदेश भाजपा अध्यक्ष नंद कुमार चौहान ने कहा है कि कुछ सीटें भाजपा ने गंवाई है। तो कुछ नई सीटें भी हमने जीती हैं। मध्यप्रदेश के निकाय चुनाव परिणामों पर अपनी सरकार का बचाव करते हुए शिवराज ने कहा है कि इन परिणामों को सांसद और विधायकों के प्रदर्शन से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए। मगर मुख्यमंत्री की मुश्किलें यह हैं कि उनके गृह जिले विदिशा की शमशाबाद सीट पर भाजपा उम्मीदवार को करारी हार का सामना करना पड़ा है। जबकि उस इलाके से उनकी सरकार में एक मंत्री भी शामिल हैं।
सरकार के मंत्री और मुख्यमंत्री के गृह जिलें में पार्टी को मिली हार को भाजपा आलाकमान हल्के में नहीं लेना चाहता है। एक अन्य आंकड़ा भी है जोकि शिवराज की मुश्किलें बढ़ा सकता है। बताया जा रहा है कि शिवराज ने निकाय चुनाव के प्रचार की कमान खुद अपने हाथों में थाम रखी थी। उन्होंनें 27 जगहों पर जाकर जिन भाजपा उम्मीदवारों के लिए समर्थन मांगा उनमें से 13 जगहों पर भाजपा उम्मीदवारों को हार का सामना करना पडा है।
पार्टी में शिवराज का विरोधी खेमा इस आंकडे को उनके खिलाफ औजार के रूप में इस्तेमाल करेगा। व्यापम कांड में भी शिवराज पर सवाल उठे थे। उनके मंत्रियों को मामले में जेल की हवा भी खानी पड़ी। तब संघ की पसंद होने के वजह से शिवराज अपनी कुर्सी बचाने में कामयाब रहे।
भाजपा के एकजूटता की खुली कलई
निकाय चुनाव परिणामों ने भाजपा के अंदर के झगड़े की भी कलई खोली है। बालाघाट में भाजपा बेहद मजबूत मानी जाती है। लेकिन यहां पार्टी को हार की मुंह देखनी पडी है। शिवराज सरकार के कद्दावर मंत्री गौरी शंकर बिसेन का यह इलाका है। मगर उनकी यहां के सांसद बोध राम भगत से नहीं पटती है। बताया जा रहा है कि बालाघाट में भाजपा को मिली हार भगत और बिसेन के बीच की तनातनी का नतीजा है।
कांग्रेस के लिए भी सुखद स्थिति नहीं, बसपा को लगा झटका
मध्य प्रदेश के निकाय चुनाव में कांग्रेस की स्थिति भी सुखद नहीं है। पार्टी अपने पुराने प्रदर्शन में बेशक 6 निकायों की संख्या जोडने में कामयाब रही है। लेकिन उसकी यह कामयाबी इतनी बड़ी नहीं है कि अगले वर्ष होने वाले प्रदेश विधानसभा चुनाव में वह भाजपा को सीधे मात दे सके।
पार्टी के युवा चेहरे के रूप में मध्य प्रदेश की भविष्य माने जा रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया को निकाय चुनावों ने झटका दिया है। उनके प्रभाव वाले चंबल और ग्वालियर के इलाकों में कांग्रेस पार्टी का प्रदर्शन खराब रहा है। पुराने नेता एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री कमल नाथ ने अपना गढ बचाते हुए यह संदेश दे दिया है कि वे शिवराज के सामने कांग्रेस के चेहरे के रूप में भाजपा को कड़ी चुनौती दे सकते हैं। निकाय चुनाव के परिणामों ने भविष्य के लिए बसपा की भी चिंताएं बढाई हैं। बसपा की परंपरागत मानी जाने वाली डबरा निकाय पर भाजपा की जीत हुई है। पहली दफे डबरा में भाजपा का परचम लहराया है।