भारत में बन रही अधिक तापमान पर टिकने वाली कोरोना वैक्सीन वायरस के डेल्टा और ओमिक्रॉन समेत अन्य स्वरूपों पर कारगर साबित हुई है। यह दावा चूहों पर हुए एक शोध के नतीजों में किया गया है। बेंगलुरु स्थित भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी) और बायोटेक स्टार्ट-अप कंपनी मिनवैक्स द्वारा विकसित की जा रही इस ‘वॉर्म’ वैक्सीन में वायरस के स्पाइक प्रोटीन (आरबीडी) का इस्तेमाल किया गया है।
ऑस्ट्रेलिया के कॉमनवेल्थ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन (सीएसआईआरओ) के शोधकर्ताओं ने बताया कि अधिकांश टीकों को असरदार बनाए रखने के लिए बहुत कम तापमान में रखना होता है, लेकिन गर्मी सह सकने वाला यह टीका (हीट स्टेबल वैक्सीन) चार हफ्तों तक 37 डिग्री सेल्सियस और 100 डिग्री सेल्सियस में 90 मिनट तक रखा जा सकता है।
वायरसेज पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन के मुताबिक, चूहों को यह ‘वॉर्म’ वैक्सीन लगाकर जब उनके खून के नमूनों की जांच की गई तो उनमें डेल्टा और ओमिक्रॉन स्वरूपों के खिलाफ प्रभावी एंटीबॉडी मिलीं। शोधकर्ताओं का कहना है कि अगर सब कुछ ठीक रहा तो गर्मी में भी टिक पाने वाला यह टीका उन गरीब और कम आय वाले देशों में वैक्सीन असमानता को दूर करने में बड़ी भूमिका निभा सकता है, जिनके पास पर्याप्त कोल्ड चेन भंडारण सुविधा नहीं है।
गरीब देशों को बड़ी मदद
बता दें, दुनियाभर में 10 अरब से ज्यादा कोरोना खुराकें लग चुकी हैं और 51 देशों में तो 70 फीसदी से ज्यादा आबादी का टीकाकरण हो गया है, लेकिन कमजोर देशों में यह आंकड़ा महज 11 फीसदी ही है।
फाइजर को चाहिए होता है -70 डिग्री तापमान
भारत में बड़े पैमाने पर लग रहा कोविशील्ड टीका दो से आठ डिग्री सेल्सियस पर रखा जाता है तो वहीं, अमेरिका के फाइजर टीके को विशेष कोल्ड स्टोरेज में -70 डिग्री सेल्सियस तापमान की आवश्यकता पड़ती है।