कटनी. कभी मालगाड़ी से लेकर यात्री ट्रेनों को तेज रफ्तार के साथ गंतव्य तक पहुंचाने वाली डीजल इंजन अब धीरे-धीरे गुजरे जमाने की बात हो रही है। भारतीय रेलवे ने नई तकनीक अपनाया तो इसका असर भी हुआ। पश्चिम मध्य रेलवे (पमरे) जोन जबलपुर में ज्यादातर रेलवे लाइन इलेक्ट्रिफाइड हुई तो डीजल इंजन की जगह बिजली इंजन का उपयोग बढ़ गया। इस बदलाव के बाद एनकेजे डीजल शेड से 240 डीजल इंजन ग्राउंड कर उसकी जगह अब 170 बिजली इंजन ने ले ली। इस बदलाव का असर कर्मचारियों की संख्या पर भी पड़ा। कई कर्मचारी स्वयं की डिमांड पर ट्रांसफर कर दिए गए तो कई कर्मचारियों ने बिजली इंजन का काम सीखकर रेलवे के साथ कंधे से कंधा मिलाया और साथ चलने का निर्णय लिया।
ऐसे जानें रेलवे का बदलता स्वरुप – 240 डीजल इंजन डीजल शेड एनकेजे से ग्राउंड किया गया। – 170 इलेक्ट्रिक इंजन भारतीय रेलवे ने उपलब्ध करवाया। – 1250 कर्मचारी पहले डीजल शेड एनकेजे में दे रहे थे सेवाएं। – 250 ऐसे कर्मचारी जो ट्रांसफर के साथ सीएनडब्ल्यू व टीआरडी में गए। – 1000 कर्मचारियों ने इलेक्टिक इंजन में कर रहे काम, नाम जरुर एनकेजे डीजल शेड ही है। – 3 से ज्यादा डीजल इंजन ही अब रेलवे ने यहां रखा है, वो भी शंटिंग के लिए।
पुराने इंजनों को क्या करता है रेलवे- बदलते तकनीक के बाद पुराने इंजनों को रेलवे या तो ऐसे देशों को बेच देता है, जिन्हे इन इंजनों की जरुरत होती है। या फिर कुछ इंजन जो बिल्कुल काम के नहीं होते उन्हे कबाड़ में बेचने की प्रक्रिया अपनाई जाती है। पश्चिम मध्य रेलवे जबलपुर जोन के सीपीआरओ राहुल जयपुरियार बताते हैं कि कटनी-सतना, कटनी-जबलपुर, कटनी-सिंगरौली रेलवे लाइन में इलेक्ट्रिफिकेशन के बाद डीजल इंजन की जगह अब बिजली इंजन का उपयोग बढ़ गया है।