सुप्रीम कोर्ट ने दहेज हत्या के मामले में व्यवस्था देते हुए कहा है कि दहेज की मांग अगर विवाहिता की मौत से काफी पहले भी की गई थी तो भी यह दहेज हत्या मानी जाएगी, क्योंकि दहेज प्रताड़ना और दहेज हत्या में बहुत करीबी संबध है।
शीर्ष अदालत ने कहा कि दहेज हत्या की धारा 304 बी में लिखे ‘सून बिफोर’ यानी ठीक पहले को ‘इमिडिएट बिफोर’ तत्काल पहले के तौर पर नहीं पढ़ा जा सकता।
शुक्रवार को यह फैसला देते हुए अदालत ने दहेज हत्या के मामलों में अभियुक्तों के अंतिम बयान दर्ज करते समय ट्रायल कोर्ट की ओर से गंभीरता न दिखाने पर चिंता भी व्यक्त की। शीर्ष अदालत ने कहा कि ऐसे मामले में कभी-कभी पति के परिजनों को भी फंसाया जाता है।
अदालतों को इसका ध्यान रखना चाहिए। इन टिप्पणियों और इस बारे में दिशा-निर्देश दोहराने के साथ ही सर्वोच्च अदालत ने धारा 304 बी तथा 498ए के तहत दहेज हत्या और प्रताड़ना के दोषी पति की अपील खारिज कर दी। साथ ही उसे सात वर्ष की कैद व जुर्माने की सजा देने के पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के फैसले को बरकरार रखा।