उमरिया \बांधवगढ़ में बाघ देखने आने वाले पर्यटक पहाड़ के ऊपर क्षीर सागर में स्थित भगवान विष्णु की शेष शैया का दर्शन किए बिना वापस नहीं जाते। श्रद्धालु सावन के महीने में भी यहां पहुंचते हैं। बांधवगढ़ के किले से पहले स्थित यह प्रतिमा इसलिए अनोखी है क्योंकि यह हजारों साल पुरानी है। बांधवगढ़ के पहाड़ के विभिन्न हिस्सों में भगवान के 12 अवतारों की छवियां पत्थरों पर उकेरी गई थीं, लेकिन भगवान की यह शेष शैया पर्यटकों को विशेष आकर्षण में बांध देती है। यहां कच्छप स्वरूप और शेष शैया पर आराम की मुद्रा में भी भगवान विष्णु के दर्शन होते हैं।
पहाड़ का नाम है बांधवगढ़ : बांधवगढ़ का नाम यहां मौजूद एक पहाड़ के नाम पर ही रखा गया है। इस पहाड़ पर ही किला स्थित है, जिसका निर्माण करीब दो हजार साल पहले कराया गया था। रीवा रियासत के महाराज व्याघ्रदेव ने इसका निर्माण कराया था। इसी पहाड़ पर किले के रास्ते में स्थित भगवान विष्णु की शेष शैया है।
सात कुंड, जो कभी नहीं सूखते : शेष शैया पर विराजमान भगवान विष्णु के चरणों से चरणगंगा नदी का उद्गम भी होता है। चरण गंगा नदी बांधवगढ़ के एक बड़े भाग में जंगल के जानवरों की प्यास बुझाती है। यहां सात ऐसे कुंड हैं जो अब तक कभी भी सूखे नहीं हैं। हर मौसम में इनमें लबालब पानी भरा रहता है।
इस कारण से बदलता है रंग : पुष्पेंद्र नाथ द्विवेदी बताते हैं कि ऐसी प्रतिमा मप्र में दूसरी नहीं है और यह मौसम के साथ रंग बदलती है। शेष शैया पर विराजमान भगवान विष्णु की प्रतिमा बारिश में हरियाली में डूबी नजर आती है तो सर्दियों में यह प्रतिमा आकाशीय रंग ले लेती है। जबकि गर्मी में यह प्रतिमा लालिमा धारण कर लेती है। दरअसल ऐसा प्रकृति के प्रभाव से होता है। बारिश में काई के कारण प्रतिमा हरे रंग में परिवर्तित हो जाती है, जबकि लाल पत्थर पर निर्मित होने के कारण गर्मियों में इसे लालिमा युक्त देखा जाता है। सर्दियों में गिरने वाले पुष्पों का असर प्रतिमा पर होता है।