कटनी। उज्जैन में कालेज चुनाव के दौरान एक प्रोफेसर की मौत के बाद राज्य सरकार ने कालेज चुनावों पर रोक लगा दी थी। इस घटना क्रम को बीते 6 वर्ष हो गए तब से लेकर आज तक छात्र संगठन कालेज चुनाव कराए जाने की मांग निरन्तर करते रहे। वैचारिक लड़ाई में भले ही देश के दो प्रमुख छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद तथा भारतीय राष्ट्रीय छात्र संगठन अलग-अलग हों किन्तु महाविद्यालय चुनावों को लेकर छात्र संगठन एक ही प्रतीत होते हैं। प्रदेश सरकार ने अब कालेज चुनाव को लेकर मन बना लिया है तो एक बार फिर से गहमा गहमी शुरू हो गई है। लेकिन चुनाव प्रत्यक्ष प्रणाली से होंगे या अप्रत्यक्ष इसे लेकर अभी तक सरकार की ओर से भी सीधे तौर पर बयान नहीं आया है ऐसे में एनएसयुआई ने चुनाव प्रत्यक्ष प्रणाली से न कराने के विरोध स्वरूप चुनावों के बहिष्कार की धमकी दे डाली है। जबकि अभाविप इस प्रणाली से चुनाव कराए जाने को लेकर भी सहमत है। चुनावों तिथियों का अधिकृत बिगुल तो नहीं बजा है लेकिन केम्पस में तैयारियां शुरू हो गईं है। हाल में अभाविप और एनएसयुआई ने कुछ मुद्दों को लेकर आंदोलन किया। स्वाभाविक है कि दोनों ही प्रमुख छात्र संगठन छात्रों के बीच अपनी उपस्थिति दर्ज कराने की कोशिश में जुट गए है किंतु अगर एनएसयुआई चुनाव का बहिष्कार करती है तो अभाविप को वाक ओवर मिल जाएगा और आने वाले विधान सभा चुनावों से ठीक पहले ऐसा करने से कांग्रेस को नुकसान होगा जिसके लिये वह तैयार नहीं होगी।
गैर राजनीतिक चुनाव मगर राजनीति होगी चरम पर
छात्र संघ चुनाव भले ही गैर राजनीतिक हों लेकिन सभी जानते हैं कि़ राजनीति की उपज भी यहीं से होती है और राजनितिक दल इन्हीं चुनावों में अपना जनाधार खोजते हैं कहना गलत नहीं कि छात्र संघ के यह चुनाव भाजपा कांग्रेस के लिये हमेशा ही प्रतिष्ठा का प्रश्न बने हैं। हालांकि अभाविप और भाजपा के सम्बन्ध जग जाहिर हैं लेकिन समय समय पर विधार्थी परिषद अपनी ही सरकार या फिर जनप्रतिनिधियों को घेर कर स्वयं को गैर राजनीतिक संगठन बताने की जी तोड़ कोशिश करती है। दूसरी तरफ एनस्यूआई सीधे तौर पर कांग्रेस के अनुषांगिक संगठन के रूप में कार्य करती है ऐसे में चुनाव इसलिये भी दिलचस्प हो जाते हैं क्योंकि मुकाबला अभाविप वर्सेस कांग्रेस का दिखाई देने लगता है। हालाँकि परिषद को बैक स्पोर्ट के रूप में भाजपा का सहयोग भी किसी से छुपा नहीं है। कटनी में राज्यमंत्री संजय पाठक के पास उच्च शिक्षा के राज्यमंत्री का भी प्रभार है ऐसे में भाजपा के लिए यह चुनाव काफी अहम होंगे।
विधानसभा के पहले युवा वोटरों की टोह
अगले साल प्रदेश में विधानाभा चुनाव हैं ऐसे में प्रमुख राजनीतिक दल भाजपा और कांग्रेस युवाओं के मन की टोह इस चुनाव से लेंगे। लिहाजा कोई भी कैंपस में अपनी पराजय देखना नहीं चाहेगा। फिलहाल के परिदृश्य में कटनी जिले में अभाविप केंपस में सक्रिय है तो वहीं एनएसयूआई सड़क पर सक्रिय नजर आ रही है। कांग्रेस के प्रदर्शनों में एनएसयूआई बढ़ चढ़ कर हिस्सा ले रही है, जबकि अभाविप भाजपा के कार्यक्रमों से ज्यादातर दूर ही दिखाई देती है। ऐसे में अब भाजना अपने छात्र संगठन की कितनी मदद सीधे तौर पर कर पाती है यह आने वाला समय बताएगा।
क्या है सरकार का चुनावी फार्मूला
जानकारी के अनुसार लिंगदोह कमेटी की सिफारिशों के आधार पर सितंबर में चुनाव कराए जाएंगे। उच्च शिक्षा मंत्री जयभान सिंह पवैया ने गत दिवस राजधानी के एक कार्यक्रम के दौरान यह ऐलान किया। उन्होंने कहा कि जल्द ही औपचारिक घोषणा की जाएगी। सूत्रों के मुताबिक चुनाव सितंबर के अंतिम सप्ताह के बीच होंगे। उम्मीदवारों को 10 दिन प्रचार के लिए दिए जाएंगे। चुनाव अप्रत्यक्ष प्रणाली के आधार पर होने की उम्मीद है। यानी इस बार कॉलेज में सबसे ज्यादा अंक अर्जित करने वाले छात्र को सीआर कक्षा प्रतिनिधि चुना जाएगा। ये सीआर अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, कोषाध्यक्ष और विवि प्रतिनिधि के लिए मतदान करेंगे। लिंगदोह कमेटी की सिफारिश के तहत चुनाव लड़ने के लिए आयु सीमा भी तय होगी। स्नातक में 17 से 22 वर्ष और स्नातकोत्तर के लिए 25 वर्ष अधिकतम आयु होगी। चुनाव में किसी प्रकार के प्रिंटेड मैटर का प्रयोग नहीं होगा। पांच हजार से अधिक रुपए कोई प्रत्याशी खर्च नहीं करेगा। इस आधार के तहत चुनाव होते हैं तो एनएसयूआई को मंजूर नहीं उसकी मांग है कि चुनाव प्रत्यक्ष प्रणाली से ही हों।
वैसे तो जिले में करीब 13 शासकीय कालेज हैं जहां चुनाव होंगे। यह चुनाव निजी कालेजों में भी कराये जाने हैं, लेकिन कटनी जिले में प्रतिष्ठा का प्रश£ लीड कालेज शा. तिलक कालेज तथा महिला महाविद्यालय है। पिछले इतिहास को खंगाला जाए तो तिलक कालेज में एनएसयूआई का अच्छा रिकार्ड रहा है, लेकिन महिला कालेज में उसे सफलता नहीं मिल पाई इस बार भी सभी की नजर इन दोनों कालेजों में जमी है। माना जा रहा है कि ग्रामीण क्षेत्रों के साथ कटनी के इन दो प्रमुख कालेजों में चुनाव में भारी गहमा गहमी देखने को मिलेगी।
क्या कहते हैं छात्र संगठन
– अंशु मिश्रा, जिला अध्यक्ष एनएसयूआई अभाविप की लगातार मांग के फलस्वरूप ही सरकार छात्र संघ चुनाव कराने के लिए राजी हुई है। इसी तरह सेमेस्टर प्रणाली को समाप्त करने के लिए भी अभाविप सक्रिय रही। एनएसयूआई चुनावों से पहले ही बेवजह का विवाद खड़ा करना चाहती है, दरअसल वह संभावित हार से विचलित है। अभाविप जिले के सभी कालेजों में बेहतर प्रदर्शन करेगी।
– अनुनय शुक्ला, नगर मंत्री अभाविप