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जिसके शरीर पर पड़ी गेंद, उसे कहते- देखो इसे तो मेडल मिला है

जिसके शरीर पर पड़ी गेंद, उसे कहते- देखो इसे तो मेडल मिला हैआम आदमी हो या खास, सब अपने संकटों का सामना अपने तरीकों से करते हैं। ऐसा ही अनूठा उपाय भारतीय क्रिकेटर्स ने तब ढूंढा था, जब वे दक्षिण अफ्रीका के खतरनाक गेंदबाजों की गेंदों को रोकने में नाकाम हो रहे थे और कई गेंदे भारतीय खिलाड़ियों के शरीर से टकराकर निशान बना दे रही थीं।
उस सीरीज के दौरान साउथ अफ्रीका के गेंदबाजों ने भी इसे अपनी जीत का मंत्र मानते हुए भारतीय खिलाड़ियों के शरीर को निशाना बनाना शुरू कर दिया था।
किस्सा सन् 1992 का है। उस साल भारतीय टीम एक टेस्ट सीरीज खेलने दक्षिण अफ्रीका गई थी। 13 नवंबर को शुरू हुए पहले टेस्ट में भारतीय बल्लेबाजों ने अच्छा खेल दिखाया, लेकिन दक्षिण अफ्रीकी गेंदबाजों ने अपने तेवर कुछ ऐसे दिखाए कि मैच ड्रॉ हो गया।
पहला मैच तो जैसे-तैसे समाप्त हुआ, लेकिन दूसरे मैच में बात कांटे की टक्कर पर आ टिकी। खेल अब मैदान के अलावा भारत के बल्लेबाजों और दक्षिण अफ्रीका के तेजतर्रार गेंदबाजों के बीच किसी माइंड गेम की तरह भी चल रहा था।
भारतीय खेमे ने तय किया कि गेंदबाजों की धुनाई करेंगे ताकि पलड़ा भारत के पक्ष में झुक जाए। मगर यह क्या! भारतीय बल्लेबाजों का दांव तो उल्टा पड़ गया। अफ्रीकी गेंदबाजों की गेंदे जबरदस्त स्विंग करते हुए कभी टप्पा खाकर बाहर निकलतीं तो कभी एकदम अंदर घुस जातीं।
भारतीय बल्लेबाज गेंद को समझते उससे पहले वह उनकी जांघ, घुटनों, पेट या हाथ से टकरा जाती। चूंकि बॉल की गति भी तेज होती, ऐसे में भारतीय बल्लेबाजों के शरीर पर निशान बनने लगे। अंतत: हमारे बल्लेबाजों ने हथियार डाल दिए। मैच के बाद जब ड्रेसिंग रूम में पहुंचे तो सब तनाव में थे।
कपड़े बदलते वक्त एक-दूसरे के शरीर पर गेंदों से बने निशान देखे तो तनाव और बढ़ गया। मगर तभी उसे हल्का करने के लिए सब मजाक पर उतर आए और कहने लगे – ‘ये देखो, इसको जांघ पर दो मेडल मिले हैं। और ये इसको तो पेट पर एक बड़ा वाला मेडल मिला है।”
इस तरह निशानों को उन्होंने मेडल मानकर पलभर में तनाव का खत्म कर लिया। बाद में टीम हारते मैच को ड्रॉ करवा ले गई।

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