लाइफ स्टाइल। कहना जरा भी अतिश्योक्ति नहीं कि मोबाइल ने हमे या हमारे परिवार को करीब ला दिया है, पर कहीं न कहीं हमें रिश्तों की बुनियाद से दूर भी कर दिया है।
घर परिवार में चार लोग साथ बैठते भी हैं तो सब अपने अपने मोबाइल पर व्यस्त रहते हैं। सफर में जाते हैं तो अपनी अपनी सीट पर मोबाइल में आंख लगा लेते हैं। यही नहीं बाजार भी जाते हैं तो पूरी पूरी रास्ता मोबाइल पर बात करते हैं।
एक दूसरे से बात भी व्हाट्सएप के जरिये होती है। न तो घरों में पारिवारिक माहौल रहा गयं न ही किसी विषय पर चर्चा का समय। इसका सबसे बुरा असर बच्चों और युवाओं पर पड़ा है।
संस्कार से दूर होते बच्चों को भले ही गूगल गुरु से ज्ञान हासिल हो रहा हो लेकिन इस ज्ञान में सिक्के के दोनों पहलू भी छिपे हैं। अच्छा और बुरा बच्चे युवा अच्छे को आत्मसात कर ले तो ठीक लेकिन अगर उन्हें बुराई भा गई तो क्या होगा।
इंटरनेट की दुनिया मे अच्छा और बुरा का फर्क समझना काफी मुश्किल है। पहले परिवार में किसी विषय पर चर्चा होती थी तो घर के बड़े बुजुर्ग माता पिता भाई बहन अच्छे और बुरे में फर्क समझाते थे पर अब यह फर्क समझाने वाला कोई नहीं।
मोबाइल या इंटरनेट हमे दुनिया से जरूर जोड़ रहा है किंतु हमें अपनो और अपनों के ज्ञान उनके अनुभवों से दूर ले जा रहा है। लिहाजा जरूरी है कि हम बच्चों युवाओं को मोबाइल या नेट चाहे जितना दें लेकिन उन्हें एक पारिवारिक माहौल से दूर कदापि न होने दे अन्यथा परिणाम घातक हो सकते हैं।