मौतों के आंकड़ें बढ़ना बदस्तूर जारी हैं. सोमवार का दिन और रोज जैसा नहीं था. सुनहरे सपनों के बीच रोंगटे खड़े कर देने वाली चीखें थीं.
सर्द थी और हवाएं बर्फीली. रुक रुककर हो रही बारिश भी घाव में नमक रगड़ने जैसा काम बड़े ही शिद्दत से कर रही थी. और इन्हीं सब के बीच तुर्की. वहां के लोग. अधजगे-उनींदे इधर से उधर बदहवासी का आलम. लोग हैरान और मौसम परेशान. 7.8 की तीव्रता के भूकंप से 2711 लोगों की मौत हो गई जबकि हजारों की संख्या में लोग घायल हो गई।
मौतों के आंकड़ें बढ़ना बदस्तूर जारी हैं. सोमवार का दिन और रोज जैसा नहीं था. सुनहरे सपनों के बीच रोंगटे खड़े कर देने वाली चीखें थीं. आंख मलते हुए हाथ थे. घरों से बाहर भागते लोग. अपनों को तलाशती आंखें और दूसरों की चीत्कार सुन जहां हैं, वहीं पर ठहर जाते लोग. 3400 से ज्यादा इमारतें जमींदोज हो गई. तुर्की के बाद सबसे ज्यादा नुकसान सीरिया में दर्ज किया गया. तुर्की में मौतों का आंकड़ा जहां चार डिजिट में रहा वहीं सीरिया में ये तीन तक सीमित रहा. लेबनान, ईराक, इजरायल, साइप्रस, ग्रीस, जॉर्जिया और जॉर्डन तक भूकंप के झटकों से हिले.
जानकारों की माने तो आने वाले समय में राहत और बचाव कार्य का काम टेढ़ी खीर है. एक तो भूकंप की मार दूसरी मौसम की मार. मौसम विज्ञानियों के मुताबिक़ एपिक सेंटर के आसपास बचाव काम काफी मुश्किलों वाला है. आने वाले समय में मुसीबतें बढ़ाने के लिए जबरदस्त बारिश के होने की संभावना को भी खारिज नहीं किया जा सकता. दिन में जहां तापमान तीन से चार डिग्री दर्ज किया जा रहा है तो वहीं रात तो जमाने वाली होंगी, ऐसा पूरे तथ्यों के साथ बताया जा रहा है.
वो कहते हैं न जब आफत का पहाड़ गिरता है तो किसी तरफ से कोई कसर नहीं छूटती. परेशानी बढ़ाने के लिए 3 से पांच सेंटीमीटर तक बर्फ़बारी होने का अनुमान भी लगाया जा रहा है. यही नहीं रिपोर्टों की मानें तो यदि और आगे के इलाकों में बढ़ते जाएंगे तो हालत अच्छे नहीं बदतर ही होते जाने हैं. क्योंकि यहां बर्फ़बारी 50 से 100 सेंटीमीटर तक होने की पूरी उम्मीद जताई जा रही हैं. 2818 इमारतों का जमींदोज होना ये बताने के लिए काफी है कि हजारों लोग छत के लिए उधर किस कदर भटक रहे होंगे.
उनके बचने की एकदम गुंजाइश नहीं है, क्योंकि वो 12 मंजिला इमारत के ग्राउंड फ्लोर में रहते थे. यह कहना है एक कुर्दिश महिला का, आराम से नहीं- रोते हुए. उसकी आंखें और हलक दोनों सूख गए हैं. कुछ लोग चुप कराने के लिए उसे उम्मीदों का पहाड़ दिखाते हैं कि उसके अपने ऊंचाई वाली चोटी में आराम से बैठे हैं, पर वो साफ़ साफ़ यही कहती हैं- उसका अपना अब कोई नहीं बचा. उसके बच्चे मलबे में दबे हुए हैं. साथ ही अरमान भी. अब कोई अपने घर के आसपास भी नहीं लौटना चाहता. भले ही ये सब आधी रात अचानक अपने घर से भागे हो जान बचाकर.
पहला झटका 7.8 जबकि 12 घंटे बाद वाला 7.5 का था. पहले वाले से दोनों तरफ हजारों लोग अभी भी मलबे में दबे हुए हैं और दूसरे की दहशत से जो बचे हुए हैं वो सहमे हुए हैं. हजारों तस्वीरें और वीडियो रुला रहे हैं. किसी के माथे में खून है तो कोई मलबे में गुंथा हुआ दिखाई दे रहा है. कोई गोद में बच्चे को लेकर दौड़ रहा है तो कोई बिखरे मलबे में अपनों को तलाश रहा है. और इन्हीं सब के बीच तीसरा भी दस्तक दे गया. लेकिन उसकी तीव्रता 6 की रही.