मौसम और बिजली की मार झेल रहा किसान
कटनी। विजयराघवगढ़ विद्युत मंडल की तानाशाही से किसानों के हौसले टूटने लगे। जहा एक ओर मौसम ने सूर्य की कडी धूप के साथ किसानो की खेती को नष्ट करने का बिडा उठा रखा है तो वही किसानो के साथ अत्याचार करने मे विधुत विभाग भी कोई कमी नही छोड़ रहा। गावो व नगरों मे 24 घंटे विजली मिल रही है तो वही किसानो के लिए लिए सिर्फ 8 घंटे के नियम लागू थे अब तो विधुत वितरण कम्पनी ने नये आदेश जारी कर विधुत कटौती 6 घंटे कर दी किसान न घर का रहा न घाट का घर का अनाज खेतो मे बोनी कर दिया घर से लागत लगाकर खेती मे सम्पूर्ण पैसा इस आस मे लगा दिया की खेती से मिलेगा कुछ किसानो ने तो बाजार से कर्ज तक लिया किन्तु किसानो के खेतो मे आज पानी नही दरारे पैदा हो रही है।
किसानो का मानना है की जब ईश्वर का कहर बरसाता है तो सरकार को किसानो की मदद करनी चाहिए किन्तु मदद की बजाए दो घंटे की कटौती अधिक कर दी गयी। जिस किसान की बजह से आज नगर शहर पल रहे हैं लोगों के जिवन का सहारा खेती है आज वही खेती किसानो के लिए श्राप साबित हो रही है। आज किसानो की खेती नष्ट होने की कगार पर है। न आसमान पर बादल नजर आ रहे न किसानो के खेतो मे विजली। किसान झटपटा रहा है खेती अगर नष्ट हुई तो व बाजार का कर्ज कैसे चुकाएगा या फिर अपना परिवार किसान कैसे पालेगा। सरकारी व्यवस्था चुनावी मौसम और विधुत की मार झेल रहा किसान।
विजयराघवगढ़ विधुत मंडल की तानाशाही से किसानों के हौसले टूटने लगे। जहा एक ओर मौसम ने सूर्य की कडी धूप के साथ किसानो की खेती को नष्ट करने का बिडा उठा रखा है तो वही किसानो के साथ अत्याचार करने मे विधुत विभाग भी कोई कमी नही झोड रहा। गावो व नगरों मे 24 घंटे विजली मिल रही है तो वही किसानो के लिए लिए सिर्फ 8 घंटे के नियम लागू थे अब तो विधुत वितरण कम्पनी ने नये आदेश जारी कर विधुत कटौती 6 घंटे कर दी किसान न घर का रहा न घाट का घर का अनाज खेतो मे बोनी कर दिया घर से लागत लगाकर खेती मे सम्पूर्ण पैसा इस आस मे लगा दिया की खेती से मिलेगा कुछ किसानो ने तो बाजार से कर्ज तक लिया किन्तु किसानो के खेतो मे आज पानी नही दरारे पैदा हो रही है खेतो की यह दरारे कही न कही भाजपा और किसानों के बीच की लक्ष्मण रेखा साबित होगी।
किसानो का मानना है की जब ईश्वर का कहर बरसाता है तो सरकार को किसानो की मदद करनी चाहिए किन्तु मदद की बजाए दो घंटे की कटौती अधिक कर दी गयी। जिस किसान की बजह से आज नगर शहर पल रहे हैं लोगों के जिवन का सहारा खेती है आज वही खेती किसानो के लिए श्राप साबित हो रही है।
आज किसानो की खेती नष्ट होने की कगार पर है। न आसमान पर बादल नजर आ रहे न किसानो के खेतो मे विजली। किसान झटपटा रहा है खेती अगर नष्ट हुई तो व बाजार का कर्ज कैसे चुकाएगा या फिर अपना परिवार कैसे पालेग। सरकार व सरकारी व्यवस्था चुनावी होली खेल रही है ऎसे मे किसानो की चिंता करने वाला कोई नजर नही आ रहा।