Antibiotics: यदि आप भी बार-बार बीमार पड़ते हैं या चोटिल होते हैं और इलाज के लिए एंटीबायोटिक दवाओं का सहारा लेते हैं तो इस खबर को ध्यान से पढ़ें।
आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि अब एंटीबायोटिक दवाओं का असर कम होता जा रहा है। यह खुलासा एक नए शोध में हुआ है। यह शोध भी कोई छोटी-मोटी संस्था नहीं बल्कि स्वयं आईसीएमआर ने किया है। इसलिए यह अध्ययन अधिक चिंता पैदा करता है।
भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आइसीएमआर) की ओर से एंटीबायोटिक दवाओं को लेकर किए एक अध्ययन में भय पैदा करने वाली तस्वीर सामने आई है। अध्ययन के अनुसार ऐसी आशंका है कि ज्यादातर मरीजों पर एंटीबायोटिक दवा “कारबापेनेम” काम ही नहीं करे, क्योंकि इन मरीजों में इस दवा के प्रति सूक्ष्म जीवाणु रोधक (एंटीमाइक्रोबियल) क्षमता विकसित हो गई है। आइसीएमआर की यह रिपोर्ट शुक्रवार को जारी की गई थी। देश में सूक्ष्म जीवाणु रोधक क्षमता (एएमआर) पर आइसीएमआर द्वारा जारी यह पांचवीं विस्तृत रिपोर्ट है। इस साल रिपोर्ट में अस्पताल से मिले आंकड़ों को भी शामिल किया गया है।
बढ़ रही है दवा रोधी रोगाणुओं की संख्या
“कारबापेनेम” एक शक्तिशाली एंटीबायोटिक दवा है जिसे मुख्य रूप से आइसीयू में भर्ती निमोनिया और सेप्टिसीमिया के मरीजों को दिया जाता है। यह अध्ययन करने वाली टीम की अगुआई करने वाली आइसीएमआर की विज्ञानी डा. कामिनी वालिया ने कहा कि एक जनवरी से 31 दिसंबर, 2021 के बीच के आंकड़ों का विश्लेषण किया गया। इसमें पता चला कि दवा रोधी रोगाणुओं (पैथोजेन) की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है। इसकी वजह से मौजूदा एंटीबायोटिक दवाओं की मदद से कुछ खास तरह के संक्रमण का इलाज करना कठिन हो रहा है। डा. वालिया ने कहा कि यदि तत्काल उचित कदम नहीं उठाए गए तो सूक्ष्म जीवाणु रोधक क्षमता का विकसित होना भविष्य में एक महामारी का रूप ले सकता है।
जांच रिपोर्ट के आधार पर ही लिखें दवा
डा. वालिया का कहना है कि एंटीबायोटिक दवाओं का तर्कसंगत उपयोग को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। इसके लिए जांच करने वाली प्रयोगशालाओं की गुणवत्ता में सुधार और उन्हें सशक्त बनाया जाना बहुत जरूरी है। डाक्टरों द्वारा भी एंटीबायोटिक दवाओं को निश्चित जांच रिपोर्ट के आधार पर ही लिखना चाहिए, अनुमान के आधार पर नहीं।
क्लेबसिएला न्यूमोनिया” के इलाज में इस्तेमाल की जाने वाली विशेष प्रकार की एंटीबायोटिक दवाओं के असर में भी कमी देखी गई है। 2016 में इस बीमारी के इलाज में दी जाने वाली दवाओं का असर 65 प्रतिशत प्रतिशत होता था, जो 2020 में घटकर 45 प्रतिशत पर और 2021 में कम होकर 43 प्रतिशत पर आ गया।