Black Fungus Treatment: खून चूसने वाले जोंक क्यों ढूंढने लगे हैं डॉक्टर्स… कोरोना से है कैसा कनेक्शन?
जोंक शरीर से गंदा खून चूस लेते हैं और डेड सेल यानी मृत कोशिकाओं को नष्ट कर देते हैं. दावा किया जाता है कि शरीर के किसी हिस्से में जब स्किन खराब होती है और ब्लड सर्कुलेशन बंद हो जाता है तो डेड सेल को एक्टिव करने में ये मददगार साबित होते हैं.
जोंक (Leech) के बारे में आपलोग जरूर जानते होंगे… एक ऐसा कीड़ा, जो खून चूसने के लिए जाना जाता है. क्या आप जानते हैं कि खून चूसने वाले इस जोंक का इस्तेमाल इलाज में भी किया जा सकता है?
हैरानी हो रही है न! जोंक का डंक लगने के बाद शरीर में घाव बन जाते हैं, जिसकी मरहम पट्टी करनी पड़ती है और दवाओं के जरिये ठीक होता है. अब घाव देने वाले जोंक से इलाज की बात पर हैरानी तो होगी ही!
लेकिन सुश्रुत संहिता (Sushruta-Sanhita) के मुताबिक, इलाज की एक पद्धति होती है, जलौका पद्धति (Leech Method.). आयुर्वेदिक या फिर प्राकृतिक चिकित्सा के अंतर्गत इलाज का यह तरीका अपनाया जाता है।
इसके बारे में हम आगे बताएंगे, लेकिन उससे पहले यह बता दें कि बिहार में इन दिनों खून चूसने वाले जोंक ढूंढे जा रहे हैं. इसे आम आदमी नहीं, बल्कि डॉक्टर्स भी ढूंढ रहे हैं।
आर्युेवेदिक डॉक्टर्स को है तलाश
राजधानी पटना के राजकीय आयुर्वेदिक कॉलेज के डॉक्टर्स खून चूसने वाले जोंक की तलाश कर रहे हैं. दरअसल कोरोना के बीच जो ब्लैक फंगस यानी म्यूकोरमाइकोसिस (Mucormycosis) बड़ी चुनौती साबित हो रहा है. इस बीमारी के इलाज के लिए कालाजार वाला इंजेक्शन भी मददगार साबित हो रहा है और इसलिए सरकार ने इसकी अनुमति भी दे दी है. लेकिन इधर आयुर्वेदिक डॉक्टर्स ब्लैक फंगस के इलाज की संभावना जलोका पद्धति में ढूंढ रहे हैं. और इसी प्रयोग के लिए आयुर्वेदिक कॉलेज में पढ़ रहे डॉक्टरों के साथ अन्य लोग भी जोंक ढूंढ रहे हैं.
गंदा खून चूस लेता है जोंक
जोंक शरीर से गंदा खून चूस लेते हैं और डेड सेल यानी मृत कोशिकाओं को नष्ट कर देते हैं. दावा किया जाता है कि शरीर के किसी हिस्से में जब स्किन खराब होती है और ब्लड सर्कुलेशन बंद हो जाता है तो डेड सेल को एक्टिव करने में ये मददगार साबित होते हैं. जलौका पद्धति से इलाज के लिए जोंक की जरूरत पड़ती है. जोंक के जरिये इस पद्धति से इलाज किया जाता है.
क्या है जलौका पद्धति, कैसे होता है इलाज?
जलौका दो तरह के होती हैं, सविष और निर्विष यानी विष वाले और बिना विष वाले. आयुर्वेद में इलाज के लिए बिना विष वाले जलौका का इस्तेमाल किया जाता है. इनकी पहचान करना आसान है. बिना विष वाले जलौका जहां हरे रंग की चिकनी त्वचा वाले और बिना बालों वाले होते हैं, जबकि विषैले जलौका गहरे काले रंग के और खुरदरी त्वचा वाले होते हैं. उनकी त्वचा पर बाल भी होते हैं.
कहा जाता है कि जलौका दूषित ब्लड को ही चूसते हैं और शुद्ध ब्लड छोड़ देते हैं. जलौका पद्धति में सप्ताह में एक बार जोंक लगाने की प्रक्रिया की जाती है. इस दौरान घाव भी बनते हैं, जिस पर पट्टी कर मरीज को घर भेज दिया जाता है.
जलोका विधि से उपचार पर चल रहा है काम
मीडिया रिपोर्ट्स में आयुर्वेदिक कॉलेज के प्राचार्य डॉ दिनेश्वर प्रसाद का कहना है कि किसी भी फंगस के इलाज में जलौका पद्धति काफी प्राचीन और प्रचलित है. इस पद्धति में जोंक का इस्तेमाल किया जाता है।
ग्लूकोमा के मरीजों के लिए जलौका पद्धति को लाइन ऑफ ट्रीटमेंट कहा जाता है. इसके जरिये ग्लूकोमा के साथ फंगस का भी उपचार किया जाता है. उनका कहना है कि पोस्ट कोविड के मामलों को देखते हुए इस विधि पर काम किया जा रहा है।
शरीर में कहीं भी एबनॉर्मल ग्रोथ में या आंखों में सूजन होने पर जोंक का उपचार अच्छा काम करता है।
आंख के ऊपर खून जमा होने पर जोंक रखा जाता है और उसके खून चूसने के बाद स्किम नॉर्मल हो जाती है।
बहरहाल अभी ब्लैक फंगस के उपचार के तौर पर जलोका विधि से इलाज की पुष्टि नहीं की गई है और न ही सरकार की ओर से इसे मान्यता दी गई है।