Budget 2022 Drone । केंद्र सरकार ने बजट में आइटीआइ में ड्राेन शिक्षा शुरू करने की घाेषणा की है। साथ ही स्टार्टअप से भी जाेड़ने का ऐलान किया है। खास बात यह है कि केंद्र सरकार ने भले ही इसे अब बजट में स्थान दिया हाे, लेकिन केंद्रीय मंत्री ज्याेतिरादित्य सिंधिया इसकी अहमियत पहले ही समझ चुके थे।
इसी वजह से देश का पहला ड्राेन मेला ग्वालियर के एमआइटीएस कालेज में लगाया गया था। साथ ही अब देश में ड्राेन शिक्षा देने वाला संस्थान भी ग्वालियर का एमआइटीएस कालेज हाेगा। इसके लिए एमआइटीएस का भाेपाल के राजीव गांधी प्राेद्याेगिकी संस्थान से अनुबंध भी हाे चुका है। ऐसे में बजट की घाेषणा का लाभ ग्वालियर काे भी मिलने के आसार हैं।
Budget 2022 Drone ड्राेन स्कूल शुरू करने की घाेषणा
दरअसल आम बजट 2022 में ड्राेन काे स्टार्टअप से जाेड़ने, खेती में इसका उपयाेग करने एवं आइटीआइ में ड्राेन शिक्षा का पाठ्यक्रम शामिल करने की घाेषणा की गई है। इसके लिए अन्य प्रदेशाें काे तैयारी करना हाेगी या याेजना बनाना हाेगी, जबकि मध्यप्रदेश इसके लिए पहले से ही तैयार है। क्याेंकि केंद्रीय मंत्री ज्याेतिरादित्य सिंधिया ने 11 दिसंबर काे ग्वालियर के एमआइटीएस कालेज में आयाेजित ड्राेन मेले के शुभारंभ समाराेह के दाैरान मध्यप्रदेश के पांच जिलाें में ड्राेन स्कूल शुरू करने की घाेषणा कर दी थी। जिसके साथ ही प्रदेश में इसकी तैयारी भी शुरू हाे गई थी। ऐसे में मध्यप्रदेश इस मामले में दूसरे जिलाें से काफी आगे हैं। वहीं ग्वालियर में ताे एमआइटीएस कालेज ने भाेपाल के राजीव गांधी प्राेद्याेगिकी संस्थान के साथ हफ्ते भर पहले अनुबंध भी कर लिया है। ऐसे में ड्राेन शिक्षा का सर्टिफिकेट काेर्स अब जल्द ही यहां शुरू भी हाे जाएगा। ऐसे में साफ है कि बजट में हुई घाेषणा का पहला लाभ लेने वाला प्रदेश मध्यप्रदेश हाेगा।
Budget 2022 Drone जानें क्या है ड्राेन स्कूल
ड्रोन स्कूलों में 6 महीने का सर्टिफिकेशन कोर्स हाेगा। इस कोर्स को करने के लिए कोई विशेष योग्यता की आवश्यता नहीं होगी। बल्कि 10वीं, 12वीं पास विद्यार्थी इस कोर्स को करके ड्रोन चलाने के लिए सर्टिफिकेट व पायलेट लायसेंस ले सकेंगे। जिसके बाद उन्हें 20 से 30 हजार रुपये तक के वेतन पर नौकरी मिल सकेगी। निजी स्कूल भी इस सर्टिफिकेशन कोर्स को शुरू कर सकेंगे।
प्रदेश में यहां खुलेंगे ड्राेन स्कूलः ग्वालियर, इंदौर, भोपाल, जबलपुर एवं सतना में ड्रोन स्कूल खोलने के साथ ही ग्वालियर के माधव इंस्टीट्यूट आफ टेक्नालजी एंड साइंस (एमआईटीएस) में ड्रोन एक्सीलेंसी सेंटर शुरू करने की शुरुआत हाे चुकी है। एमआईटीएस ग्वालियर का आइजी ड्रोन कंपनी से एमओयू भी हाे चुका है। करार के तहत ड्रोन से जुड़ी तमाम तकनकी को विस्तृति किया जाएगा। ड्रोन संचालन व तकनीकि पहलुओं का प्रशिक्षण विद्यार्थियों को दिया जाएगा।
Budget 2022 Drone विद्यार्थियों के लिए प्रोजेक्ट
कंपनी द्वारा विद्यार्थियों के लिए प्रोजेक्ट भी उपलब्ध कराए जाएंगे, जिनपर विद्यार्थियों द्वारा भौतिक रूप से काम किया जाएगा। फिक्की के साथ भी एक एमओयू हुआ है। जिसमें कृषि व कामर्शियल क्षेत्र में क्या जो हो रहा है, उनसे विद्यार्थियों को जोड़ा जाएगा। करार के तहत इंडस्ट्रीज व इंस्टीट्यूट पार्टन बने हैं। जिसमें इंडस्ट्री प्रोजेक्ट उपलब्ध कराएगी। विद्यार्थी इंडस्ट्रीज में जाकर विजिट भी करेंगे। फिलहाल ड्रोन को सिलेबस में विस्तृत्व रूप से जोड़ा जाएगा। हालांकि पहले से ड्रोन सिलेबस का हिस्सा हैं।
कृषि में कैसे हाेगा सहयाेगीः फर्टिलाइजर व कीटनाशक आदि छिड़काव के लिए सुबह-सुबह शाम का समय ही सबसे उपयुक्त होता है। श्रमिकों द्वारा अगर 8 घंटे की शिफ्ट में काम किया जाता है, तो 3 एकड़ खेत में छिड़काव करने में 2 दिन लगते हैं। वहीं ड्रोन से इतना ही काम 20 मिनट में पूरा हो जाता है। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि श्रमिक व किसान खुद को स्वास्थ्य के लिए हानिकारक कीटनाशक आदि से खुद को दूर रख पाते हैं। पानी की बचत होती है, साथ ही दवा भी 20 फीसद कम लगती है। परंपरागत खेती में मेढ़ छोड़ना पड़ती है, जबकि ड्रोन से दवा का छिड़काव आदि करने के लिए मेढ़ को भी समतल कर खेती के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।
Drone जानें कृषि में इसके और फायदेः
किसान की सुरक्षा: कीटनाशक दवाइयों के छिड़काव के दौरान उसके संपर्क में आने व बीमारियों से बचेंगे। सांप, बिच्छु आदि जहरीले जंतु के काटने का डर नहीं रहता। कीचड़ वाली फसलें जैसे कि धान और ऊंचाई वाली फसलों की खेती में सरलता रहेगी।
फसल की विविधता: गन्ना, अंगुर की बेल, मक्का, जीरा, गेहूं, धान, चना, टमाटर, मिर्ची, भिंडी आदि पर भी आसानी से छिड़काव किया जा सकता है।ढालवाली जमीन: ढालवाली जमीन जैसे की पर्वतीय खेतों में छिड़काव किया जा सकता है।
खर्च कम: दवा, पानी, समय आदि कम लगता है, जिससे खर्चा कम होता है। उत्पादन में वृद्धि होती है।
Drown उच्च कार्यक्षमता:
प्रति दिन 50 एकड़ में छिड़काव कर सकते हैं, परंपरागत पद्धति से काफी अधिक मेहनत व समय लगता है। जीपीएस और सेटेलाइट द्वारा भूमि का नक्शा बना कर ओटोमेटिक छिड़काव किया जा सकता है।