तो क्या 2 गज की दूरी भी नही है सुरक्षित, जानिए क्या कहती है CDC की नई रिसर्च??
भारत सरकार ने कोरोना से बचाव के लिए 2 गज यानी 6 फीट की दूरी बनाये रखने की सलाह दी है। लेकिन आपको बता दें कि ये दूरी भी संक्रमण से बचाव की गारंटी नहीं है। ताजा अमेरिकन रिसर्च के मुताबिक ये वायरस हवा में 6 फीट से भी ज्यादा दूर तक जा सकता है। यूएस सेंटर फॉर डिसीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (CDC) ने वायरस के प्रसार पर ये नई जानकारी दी है। इसे लेकर अमेरिका में नई गाइडलाइंस भी जारी की गई है। यानी बंद कमरे में ये वायरस ज्यादा खतरनाक हो सकता है और ज्यादा लोगों को संक्रमित कर सकता है, भले ही वो संक्रमित शख्स से 6 फीट से भी ज्यादा दूरी पर हों।
क्या कहती है नई रिसर्च?
नई गाइडलाइंस में बताया गया है कि कोरोना वायरस के संक्रमण का खतरा किसी मरीज से तीन से छह फीट के भीतर सबसे ज्यादा होता है।
लेकिन कोरोना वायरस हवा में 6 फीट से भी ज्यादा दूरी तक जा सकता है। इसकी बहुत ही महीन बूंद और कण इससे भी ज्यादा दूरी तक जा सकती हैं।
अगर कोई व्यक्ति संक्रमित व्यक्ति से 6 फीट की दूरी पर है, तो भी हवा में मौजूद वायरस से वह संक्रमित हो सकता है।
जब सांस छोड़ी जाती है तो इसके साथ ही तरल पदार्थ भी बूंदों के रूप में बाहर आते हैं। 1-9 बूंदें वायरस ट्रांसमिट कर सकती हैं।
ये बूंदें सांस लेने, बोलने, गाने, व्यायाम, खांसी और छींकने जैसी गतिविधियों के दौरान हवा में फैलती हैं।
स्टडी के मुताबिक एरोसोल कण तब बनते हैं जब सांसों से छोड़ी गई बहुत महीन बूंदें सूख जाती हैं। ये तेजी से सूखती हैं और इतनी छोटी होती हैं कि हवा में कुछ मिनटों से घंटों तक घूमती रह सकती हैं।
CDC के मुताबिक हमें बड़ी बूंदों से ज्यादा खतरा नहीं है, क्योंकि ये कुछ ही सेकेंड्स में हवा में खत्म हो जाते हैं। लेकिन छोटे कण जिनका वजन कम होता है, वो देर तक हवा में तैरते रहते हैं।
इस वजह से किसी बंद कमरे या क्षेत्रों में इस बीमारी के एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलने की संभावना बढ़ जाती है।
वैसे, संक्रमण का खतरा मरीज से बढ़ती दूरी और सांस छोड़ने के बाद बढ़ते समय के साथ कम होता जाता है।
विशेषज्ञों के मुताबिक एयरबोर्न का मतलब यह नहीं है कि वायरस हवा में है और आपके सांस लेने भर से ही आपको संक्रमित कर देगा। एयरबोर्न का मतलब है कि अगर एक छोटे से कमरे में कोई कोविड -19 पॉजिटिव व्यक्ति है और उस कमरे में व्यक्ति को खांसी होती है, तो एयरोसोल 30 मिनट से 1 घंटे तक हवा में मौजूद रह सकता है। ऐसे में उस कमरे में मौजूद सभी लोगों को संक्रमण का खतरा होता है, भले ही वो मरीज के आसपास ना हों।