राजनांदगांव। खुज्जी विधानसभा क्षेत्र के दिग्गज भाजपा नेता व पूर्व मंत्री रजिंदर पाल सिंह भाटिया ने रविवार को अपने छुरिया स्थित निवास में फांसी लगाकर खुदकुशी कर ली। पुलिस को कमरे से एक सुसाइड नोट मिला है। एसपी डी. श्रवण के अनुसार इसमें उन्होंने आत्महत्या का कारण पेट की तकलीफ को बताया है।
घटना रविवार शाम करीब साढ़े सात बजे की है। जब छुरिया स्थित अपने मकान के कमरे में पूर्व मंत्री भाटिया ने फांसी लगाकर खुदकुशी कर ली। पुलिस ने बताया कि मकान में वो अपने छोटे भाई के साथ रहते थे। छोटे भाई को लगा कि वो अपने कमरे में आराम कर रहे होंगे। काफी देर तक जब भाटिया बाहर नहीं आए तब छोटे भाई उसके कमरे में गए, जहां पूर्व मंत्री भाटिया की लाश फंदे पर लटकी हुई थी। इसकी सूचना उसने तत्काल पुलिस को दी। खबर मिलते ही छुरिया थाना प्रभारी निलेश पांडे मौके पर पहुंचे। पुलिस ने घर पहुंचते ही कमरे को सील किया। इधर पूर्व मंत्री व भाजपा के कद्दावर नेता भाटिया की मौत की खबर लगते ही पार्टी के जनप्रतिनिधियों के साथ कार्यकर्ता व नेता छुरिया पहुंच गए।
छात्र जीवन से ही राजनीति में कदम रखने वाले रजिंदरपाल सिंह भाटिया जिंदादिल इंसान थे। हर किसी से हंसकर मिलते। खुज्जी क्षेत्र की जनता उनकी इसी जिंदादिली की कायल थी। यही कारण है कि उन्होंने भाजपा से बगावत कर एक बार स्वतंत्र प्रत्याशी के रूप में विधानसभा चुनाव लड़ा। वे बेहद कम मतों के अंतर से हारे। साल 2013 के उस चुनाव में भाजपा तीसरी क्रम पर रही।
हमेशा जमीनी स्तर की राजनीतिक करने वाले रजिंदरपाल पूरे समय आम लोगों से जुड़ाव रखते थे। कार्यकर्ताओं के साथ ही क्षेत्र के लोगों के हर सुख-दुख में खड़े रहते थे। इतना ही नहीं राजनीति में हाशिए पर आने के बाद भी वे लोगों के जीवंत संपर्क में रहे। जब भी क्षेत्र के गांवों में जाते, दवाइयों का थैला लेकर जाते। गांव में मुफ्त में जरूरी दवाइयां बांटते। यही कारण है कि क्षेत्र के लोग नेता के रूप में कम भाई, चाचा या दादा के रूप में उनका सम्मान करते रहे।
हाशिये के बाद भी हिम्मत नहीं हारी
छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण यानी वर्ष 2001 में भी वे खुज्जी से विधायक थे। 2003 में जब भाजपा की सरकार बनी, तो रमन मंत्रिमंडल में उन्हें परिवहन मंत्री बनाया गया, लेकिन कुछ ही समय बाद उन्हें मंत्री पद से हटा दिया गया। उसके बाद से वे हाशिये पर चल रहे थे। भाजपा ने 2008 व 2013 के चुनाव में मौका नहीं दिया। बगावत के कारण पार्टी से निकाल दिया गया। 2014 के लोकसभा चुनाव के ऐन पहले उन्हें वापस पार्टी में लाया गया, लेकिन उसके बाद भी संगठन में सम्मानजनक पद नहीं मिलने से वे एक तरह से सक्रिय राजनीति से दूर होते गए, लेकिन इसके बाद भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। भाजपा व जनता, दोनों से सतत जुड़ाव बनाए रखा।
कोरोना संक्रमण के बाद से परेशान थे
कोरोना की दूसरी लहर के दौरान रजिंदरपाल भाटिया अप्रैल में संक्रमित हुए थे। उसके बाद से ही उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं था। पेट दर्द व जलन के कारण पूरे समय वे असहज रहते थे। उनके करीबियों के अनुसार भाटिया ने पहले रायपुर में इलाज कराया। फिर दिल्ली गए। वहां भी राहत नहीं मिली तो हरिद्वार जाकर भी उपचार कराया, लेकिन पेट संबंधी तकलीफों से वहां भी छुटकारा नहीं मिल पाया। बताया जा रहा है कि इसी के चलते पिछले कुछ दिनों से मानसिक रूप से भी परेशान चल रहे थे। वर्षा 2013 में उन्होंने आखिरी बार निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में विधानसभा का चुनाव लड़ा था।
खुज्जी में भाजपा को स्थापित किया था भाटिया ने
खुज्जी विधानसभा क्षेत्र में भाजपा बेहद कमजोर थी। भाटिया की इंट्री के बाद भाजपा वहां स्थापित हुई। उन्होंने कांग्रेस की इस परंपरागत सीट को भाजपा के पाले में डाला। लगातार तीन बार जीत दर्ज कर उन्होंने पूरे क्षेत्र में भाजपा को मजबूती के साथ खड़ा किया था। 2013 में स्वतंत्र प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ने के बाद भी वे कांग्रेस के भोलाराम साहू से महज 900 वोटों से ही हारे थे। भाजपा तीसरे नंबर पर थी व मुश्किल से जमानत बची थी। यही कारण है कि उनके राजनीतिक कद का सभी लोहा मानते थे