हर तरफ रेमडेसिविर को लेकर हाय तौबा मची है, जिसे देखो मुंहमांगी कीमत पर खरीदने को तैयार है लेकिन बड़ा सवाल यह है कि जिन्होंने किसी तरह पा लिया और लगवा भी लिया, क्या वह सभी बच गए? विशेषज्ञ कहते हैं कि इस इंजेक्शन का कोई खास फायदा नहीं है, इसलिए इस र्भित दवा को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कए मान्यता तक नहीं दी।
रेमडेसिविर की एक्यूट रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम (एआरडीएस) रोकने में कोई भूमिका नहीं है। रिसर्च सोसाइटी ऑफ एनेस्थीसिया एंड क्लीनिकल फार्माकोलॉजी के सचिव और संजय गांधी पीजीआइ के आइसीयू एक्सपर्ट प्रो. संदीप साहू कहते हैंकि रेमडेसिविर के पीछे भागने से कोई फायदा नहीं है।
इससे कोरोना संक्रमित में एआरडीएस रोकने में कोई खास फायदा नहीं है। न्यू इंग्लैंड जर्नल आफ मेडिसिन के हाल के शोध का हवाला देते हुए प्रो. साहू कहते हैं कि इसके मुकाबले डेक्सामेथासोन सबसे सस्ती और आसानी से मिलने
क्या है एआरडीएस
एक्यूट रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम
(एआरडीएस) एक ऐसी स्थिति
है, जिसमें फेफड़ों की हवा की
थैलियों में तरल जमा हो जाने के
कारण अंगों को आक्सीजन नहीं
मिल पाती है। गंभीर रूप से बीमार
या कोरोना संक्रमित लोगों में सांस
संबंधित तंत्र में गंभीर समस्या का
सिंड्रोम हो सकता है। यह अक्सर
घातक होता है।
रेमडेसिविर कोरोना संक्रमित खास मरीजों में देने से कोई खास फायदा नहीं है, यह बात विश्व स्वास्थ्य संगठन सॉलिडेटरी स्टडी में सामने आई है।मरीजों में एआरडीएस की परेशानी होती है, जिसमें फेफड़े की कार्य शक्ति कम हो जाती है। डेक्सामेथासोन, प्रेडनिसोन दवा सही मात्रा में देने से फेफड़े को बचाया जा सकता है।
–प्रो.अमिता अग्रवाल, हेड क्लीनिकल
इम्यूनोलॉजी विभाग, पीजीआइ, लखनऊ।
बिना डॉक्टर के सलाह न लगाएं इंजेक्शन
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