Corona Treatment: कृत्रिम श्वास नली लगाकर जूनियर डाक्टरों ने बचाई दो कोरोना मरीजों की जान

Corona Treatment: कृत्रिम श्वास नली लगाकर जूनियर डाक्टरों ने बचाई दो कोरोना मरीजों की जान

रायपुर। आम्बेडकर अस्पताल में एनेस्थीसिया व क्रिटिकल विभाग के जूनियर डाक्टरों की टीम ने एंडोट्रैकियल ट्यूब यानी कृत्रिम श्वांस नली लगाकर दो मरीजों की जान बचाई। दोनों मरीज के फेफड़े में संक्रमण अधिक होने के कारण इनका इंटुबैशन किया गया और ट्यूब के सहारे कृत्रिम सांस (वेंटिलेटर से) दी गई। इससे दोनों मरीज, जिन्हें सांस लेने में बेहद कठिनाई हो रही थी, उनका ऑक्सीजन लेवल वापस सामान्य स्तर पर आ गया।

अस्पताल प्रबंधन ने बताया कि एनेस्थीसिया व क्रिटिकल केयर विभाग की डाक्टर लिली शेरोन, डॉ. तारेन्द्र देवांगन, डॉ. मुकेश नाग, डॉ. सुषमा, डॉ. अंकिता, डॉ. त्रिलोक, डॉ. दिव्यानंद, डॉ. शीतल दास और डॉ. मनीष कुर्रे की टीम ने लगातार कई दिनों तक सिमगा, बलौदाबाजार निवासी जंतु मांझी (28) और कवर्धा की सुदामा बाई (42) की जान बचाई। दोनों को कोरोना के साथ-साथ सिग्माइड वॉल्वुलस (आंत अवरोध की बीमारी) की समस्या थी।

मरीजों का ऑक्सीजन लेवल भी बहुत कम था। इनका ऑपरेशन हुआ, लेकिन स्थिति गंभीर होने के कारण दोनों मरीजों को सांस लेने में कठिनाई हो रही थी। उनके फेफड़ों की रक्षा के लिये गले में ट्यूब (इंटुबैशन) की मदद से कृत्रिम सांस दी गई, जिससे जल्दी दोनों रिकवर हो सकें।

बक्रिटिकल केयर विशेषज्ञ डॉ. ओपी सुंदरानी के मुताबिक वेंटिलेटर में इंटुबैशन (गले में ट्यूब डालना) के बाद कोविड मरीजों का एक्सटुबैशन (ट्यूब निकालना) बहुत मुश्किल होता है, पर दोनों मरीज एक्सटुबैट हुए। हालांकि यह बेहद जटिल प्रक्रिया थी लेकिन जूनियर डाक्टरों के बेहतर कार्य से मरीज का सफल इलाज किया गया है।

एंडोट्रैकियल इंटुबैशन (ईआइ) अक्सर एक आपातकालीन प्रक्रिया होती है, जो ऐसे लोगों पर की जाती है जो बेहोश हैं या जो अपने दम पर सांस नहीं ले सकते हैं। एंडोट्रैकियल इंटुबैशन एक खुला वायुमार्ग बनाता है और घुटन को रोकने में मदद करता है। यह प्रक्रिया बेहद ही सावधानीपूर्वक मरीज को बेहोश करके किया जाता है। इसमें एक लचीली प्लास्टिक ट्यूब होती है जो सांस लेने में मदद करने के लिए मुंह के माध्यम से आपके श्वासनली में रखा जाता है और इसकी मदद से फेफड़ों में आक्सीजन पहुंचाई जाती है।

पैर में मोच फिर भी कोविड मरीजों की चिंता

इधर इलाज में शामिल डॉ. लिली शेरोन के पैर में मोच के बाद भी वह उतनी ही लगन से अस्पताल में सेवाएं दे रहीं हैं। डाक्टर लिली शेरोन कहती हैं, कोरोना काल में मैंने लोगों को सबसे ज्यादा परेशान देखा। यदि हम लोग उनका अच्छे से इलाज करते हैं तो उनके मन में भी जल्दी ठीक होने की ललक जागती है। वे डॉक्टरों की ओर उम्मीद की निगाह से देखते हैं और यही प्रश्न करते हैं कि वे कब ठीक हो जाएंगे। उनकी यही उम्मीद हमें भी हौसला देती है।

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