Durga Puja Sindoor Khela Rasam 2022 : दुर्गा पूजा भारत में सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है, और विजया दशमी इस उत्सव के पांच दिनों के अंत का प्रतीक है। इस बार विजयादशमी 5 अक्टूबर को है। पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा सबसे बड़ा त्योहार है। यह दिन विवाहित महिलाओं के लिए विशेष दिन है, जो पूरे साल इस दिन का इंतजार करती हैं।
बड़े लोगों के पैरों पर और अन्य एक-दूसरे के चेहरे पर सिंदूर लगाते हैं
इस दिन बंगाली समुदाय के लोग मां दुर्गा को सिंदूर अर्पित करते हैं। साथ ही भव्य पंडाल में मौजूद सभी लोगों को सिंदूर लगाते हैं और दुर्गा पूजा की शुभकामनाएं देते हैं। इस परंपरा को ‘सिंदूर खेला’ के नाम से जाना जाता है। सिंदूर खेला उसके बाद शुरू होता है। इसमें महिलाएं एक-दूसरे पर सिंदूर लगाती हैं – उनमें से बड़े लोगों के पैरों पर और अन्य एक-दूसरे के चेहरे पर सिंदूर लगाते हैं। इस साल मां दुर्गा का ये महोत्सव 01 अक्टूबर से लेकर 05 अक्टूबर के बीच मनाया जाएगा। आइए जानते हैं क्यों हैं दुर्गा पूजा खास और क्या है सिंदूर खेला का महत्व।
क्या है सिंदूर खेला?
नवरात्रि का पर्व पूरे 9 दिन तक मनाया जाता है। मान्यता है मां दुर्गा पूरे 10 दिन के लिए अपने मायके आती है और उनके स्वागत के लिए ही विशालकाय पंडाल मां दुर्गा की मूर्ति के साथ सुशोभित किए जाते हैं। बंगाली समुदाय में पंचमी तिथि से मां दुर्गा की पूजा-उपासना आरंभ होती है और अंत में यानी दशमी तिथि के दिन सिंदूर की होली खेलकर उन्हें विदा किया जाता है। बंगाली समुदाय में इसे सिंदूर खेला के नाम से जाना जाता है।
सिंदूर खेला का कैसे हुआ आरंभ
दुर्गा महोत्सव पर सिंदूर खेला का इतिहास करीब 450 साल पुराना है। बंगाली समुदाय में विजयादशमी के दिन सिंदूर खेल के साथ धुनुची नृत्य की भी परंपरा निभाई जाती है। धार्मिक मान्यता के अनुसार धुनुची नृत्य करने से मां दुर्गा प्रसन्न होती हैं । इसे मनाए जाने के पीछे यही मान्यता मानी जाती है कि मां दुर्गा प्रसन्न होकर उनके सुहाग की रक्षा करेंगी।
सिंदूर खेला की रस्म
विजयादशमी के दिन सुहागिन स्त्रियां सबसे पहले मां दुर्गा को पान के पत्ते मीन सिंदूर लेकर मां दुर्गा को अर्पित करती हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार मां दुर्गा जब मायके से विदा होकर ससुराल जाती हैं तो उनकी मांग सिंदूर से सजानी पड़ती है। इसके बाद सुहागिनें एक-दूसरे को सिंदूर लगाकर एक-दूसरे को दुर्गा पूजा की शुभकामनाएं देती हैं। ऐसा कहते हैं कि ये सिंदूर लगाने से सुहागिनों को सौभाग्यवती होने का वरदान प्राप्त होता है।