Health दुनियाभर में पिछले करीब दो साल से जारी कोरोना संक्रमण ने स्वास्थ्य व्यवस्थाओं के लिए बड़ी चुनौती पैदा कर दी है। डेल्टा जैसे वैरिएंट के कारण होने वाले संक्रमण की गंभीरता के कारण अस्पतालों में ऑक्सीजन और कुछ आवश्यक दवाओं की भारी कमी के चलते लोगों को खासा मुसीबतों का सामना करना पड़ा। कोरोना संक्रमण के बीच कई तरह की दवाइयों की मांग तेजी से बढ़ी जिसमें एंटीबायोटिक्स, एंटीवायरल, स्टेरॉयड, श्वसन संबंधी दवाएं और विटामिन सप्लीमेंट्स प्रमुख रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ इस दौरान कुछ ऐसी दवाइयों की मांग में भी काफी बढ़ोतरी देखी गई है, जिसके ज्यादा उपयोग को स्वास्थ्य विशेषज्ञ नुकसानदायक मानते हैं।
नोमुरा की एक रिपोर्ट के मुताबिक पिछले कुछ महीनों में गैर-कोविड-19 दवाओं की बिक्री दो साल के सीएजीआर (कंपाउंड एनुअल ग्रोथ रेट) के आधार पर खराब रही। हालांकि कुछ दवाइयों की मांग में जबरदस्त इजाफा देखने को मिला है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक भले ही कोरोना का समय आम लोगों के लिए काफी मुश्किलों से भरा हुआ रहा हो, लेकिन इस दौरान दवा उद्योग से जुड़ी कंपनियों को मुनाफा हुआ। आइए आगे की स्लाइडों में समझते हैं कि कुछ दवाइयों की बढ़ी मांग को स्वास्थ्य विशेषज्ञ क्यों गंभीर संकेत मान रहे हैं?
भारतीय फार्मास्युटिकल उद्योग और कोरोना काल?
मीडिया रिपोर्टस के मुताबिक फार्मास्युटिकल उद्योग ने कोरोना के समय में अच्छा मुनाफा कमाया। स्टेहैपी फार्मेसी की एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर आरुषि जैन बताती हैं, पिछले दो साल की बात करें तो भारतीय फार्मास्युटिकल उद्योग ने दुनियाभर में अपना नाम कमाया। भारत कोविड-19 वैक्सीन का दुनिया का सबसे बड़ा उत्पादक देश है। भारतीय फार्मा और हेल्थकेयर उद्योग ने पिछले दो वर्षों में अच्छी ग्रोथ की है। महामारी के दौरान डिजिटल हेल्थ और टेलीमेडिसिन ने लोगों की मुसीबतों को कम करने की दिशा में अच्छा प्रयास किया।
कुछ रिपोर्टस में जिक्र किया गया है कि कोरोना के समय में एंटी-डिप्रेशन की दवाइयों की मांग पहले की अपेक्षा काफी बढ़ी है, स्वास्थ्य विशेषज्ञ इस रिपोर्ट को लेकर चिंतित हैं।
एंटी-डिप्रेशन दवाओं की बढ़ती मांग चिंताजनक
अमर उजाला से बातचीत में वरिष्ठ मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ सत्यकांत त्रिवेदी बताते हैं, एंटी-डिप्रेशन दवाइयों की पिछले कुछ वर्षों में बढ़ी मांग स्पष्ट बताती है कि कोरोना संक्रमण ने लोगों के शारीरिक ही नहीं मानसिक स्वास्थ्य को भी काफी गंभीर रूप से प्रभावित किया है। अवसाद और तनाव से ग्रसित लोगों की संख्या पिछले एक साल में 40-60 फीसदी तक बढ़ी है, यह मानसिक स्वास्थ्य के लिहाजे से काफी चिंताजनक है।
कुछ दवाइयों के हो सकते हैं गंभीर दुष्प्रभाव
रिपोर्ट के मुताबिक कोरोना काल में न्यूरो-कॉग्नेटिव इंहेंसर (एंटीड्रिप्रेसेंट्स दवा) की बिक्री और खपत में करीब 20-30 फीसदी का उछाल आया है। कोरोना ने प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों तरह से लोगों के मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित किया है। डॉ सत्यकांत बताते हैं, इस तरह की दवाइयों के ज्यादा या फिर खुद इस्तेमाल शुरू करने के गंभीर परिणाम हो सकते हैं। चिकित्सकीय परामर्श के आधार पर ही इनका सेवन करना चाहिए। कोरोना काल में मानसिक स्वास्थ्य की समस्या बड़े चैलेंज के तौर पर उभरी है, जिसका असर आने वाले कई वर्षों तक बने रहने की आशंका है।
Health स्टेरॉयड दवाओं की मांग में भी बढ़ोतरी
कोरोना के इस दौर में स्टेरॉयड दवाओं की मांग भी तेजी से बढ़ी है। विशेषकर कोरोना की दूसरी लहर के दौरान रोगियों को स्टेरॉयड दवाएं काफी ज्यादा दी गईं, जिसके ब्लैक फंगस के रूप में गंभीर परिणाम भी देखने को मिले। एक बातचीत में दिल्ली के साकेत स्थित मैक्स अस्पताल में वरिष्ठ श्वास रोग विशेषज्ञ डॉ आशीष जैन बताते हैं, स्टेरॉयड ब्लड ग्लूकोज के स्तर को बढ़ा देता है, जिसका प्रतिरोधक क्षमता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। इसके इस्तेमाल को लेकर सभी को विशेष सावधानी बरतने की आवश्यकता है, यह दवाइयां जितनी फायदेमंद होती हैं, इसके दीर्घकालिक परिणाम उतने ही गंभीर हो सकते हैं।