नई दिल्ली। रेलवे की गाइडलाइन दिव्यांग, बुजुर्ग यात्रियों का विशेष ख्याल रखने की बात करती है। साथ ही आरक्षित कोच में रात के समय यात्रियों को सुरक्षित गंतव्य पर उतारने और स्टेशन आने से पहले उन्हें सतर्क करने की बात भी कहती हैं। लेकिन कई बार रेलवे कर्मचारी इन नियमों की अनदेखी करते है। ऐसे ही एक मामले में बुजुर्ग और दिव्यांग दंपती को लोअर बर्थ न उपलब्ध कराने तथा गंतव्य से करीब सौ किलोमीटर पहले उतारने के मामले में रेलवे को घोर लापरवाही और सेवा मे कमी का जिम्मेदार मानते हुए तीन लाख रुपये मुआवजा देने का आदेश हुआ है। राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग ने रेलवे की याचिका खारिज करते हुए मुआवजा देने के जिला उपभोक्ता फोरम और राज्य उपभोक्ता फोरम के आदेश को सही ठहराया है।
राष्ट्रीय आयोग ने कहा कि फोरम ने हर पहलू पर विस्तार से विचार किया है और उसका फैसला साक्ष्यों पर आधारित है। राज्य आयोग ने भी फोरम के फैसले को परखने के बाद सही ठहराया है। फैसले में कोई कानूनी खामी नहीं है। राष्ट्रीय आयोग ने याचिका आधारहीन बताते हुए खारिज कर दी।
आग्रह के बाद भी टीटीई ने नहीं दी लोअर बर्थ
रेलवे की लापरवाही का यह मामला कर्नाटक का है। चार सितंबर 2010 को बुजुर्ग दंपती सोलापुर से बिरूर जाने के लिए थर्ड एसी में दिव्यांग कोटे से सीट आरक्षित कराई क्योंकि दंपती में एक व्यक्ति दिव्यांग था। उन्हें रेलवे से लोअर बर्थ आवंटित नहीं हुई। दंपती ने भी टीटीई से लोअर बर्थ देने का आग्रह किया लेकिन टीटीई ने लोअर बर्थ नहीं दी। काफी समय तक परेशान होने के बाद हमदर्दी में एक यात्री ने अपनी लोअर बर्थ उन्हें दे दी लेकिन सीट न मिलने तक वे बहुत परेशान रहे और कुछ समय उन्हें ट्रेन में सीट के पास नीचे बैठकर यात्रा करनी पड़ी।