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Janmashtami 2022: कौन था बर्बरीक जिसका कृष्ण और महाभारत से है संबंध

Janmashtami 2022: कौन था बर्बरीक जिसका कृष्ण और महाभारत से है संबंध

श्रीकृष्ण ने अपने जीवनकाल में अनेक लीलाएं की। जिसमे महाभारत का युद्ध सबसे महत्वपूर्ण था। इस युद्ध के दौरान भले ही कृष्ण ने अस्त्र ना उठाने का प्रण किया हो। लेकिन अपनी बुद्धि चातुर्य से उन्होंने पांडवों को जिताने का भरसक प्रयास किया। इसी कड़ी में एक लीला कृष्ण की बर्बरीक के साथ भी है। जो पांडवों के दूसरे ज्येष्ठ भ्राता गदाधारी भीमसेन के पोते थे।

कुछ किताबों के अनुसार बर्बरीक पूर्वजन्म में यक्ष थे। जिनका जन्म द्वापरकाल में गदाधारी भीमसेन के पोते के रूप में हुआ था। दरअसल, भीमसेन ने राक्षसी हिडिंबा से विवाह किया था। जिस विवाह के फलस्वरूप भीम को घटोत्कच रूपी पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई थी। बर्बरकी भीम पुत्र घटोत्कच का ही पुत्र था।। जो कि अपने दादा और पिता के समान ही महान बलशाली और हमेशा सत्य का साथ देने वाला था। महान योद्धा और वीर बर्बरीक की पूजा सुप्रसिद्ध खाटू श्याम महाराज के रूप में की जाती है। जिनकी कथा कुछ इस प्रकार से है।

बर्बरीक बालकाल से ही वीर और महान योद्धा थे। उनकी माता ने ही बर्बरीक को युद्ध की दीक्षा दी थी। दरअसल, बर्बरीक की मां ने मां आदिशक्ति की घोर तपस्या कर उन्हें प्रसन्न किया था। और वरदान के रूप में तीन अभेद्य बाण मांगे थे। जिन्हें मां आदिशक्ति ने बर्बरीक की मां को दिए थे। तीन अभेद्य बाणों की वजह से ही बर्बरीक की मां का नाम तीन बाणधारी प्रसिद्ध था। वहीं इन बाणों के साथ ही वाल्मिकी ने उन्हें धनुष प्रदान किया था। जो बर्बरीक की मां को तीनों लोकों में विजय प्राप्त करने में मदद कर सकता था।

जब कौरवों और पांडवों के बीच युद्ध होना सुनिश्चित हो गया। तो इसकी सूचना बर्बरीक को भी प्राप्त हुई। ऐसे में बर्बरीक ने भी अपने प्रियजनों के साथ युद्ध में शामिल होने का निर्णय किया। और मां से विदा लेकर चलने को आतुर हुए। तब माता ने उनसे आशीर्वाद स्वरूप उनसे हारे हुए पक्ष की तरफ से युद्ध लड़ने का वचन लिया। क्योंकि बर्बरकी महान योद्धा और वीर थे। साथ ही उनके पास मां आदिशक्ति का दिया हुआ तीन बाण और धनुष भी मौजूद था। इसलिए वो जिस भी सेना की तरफ से लड़ते उसकी जीत सुनिश्चित थी।

भगवान कृष्ण ये भलीभांति जानते थे कि इस युद्ध में हार कौरवों की होगी और बर्बरीक को माता के वजन के फलस्वरुप उसी पक्ष की ओर से लड़ना होगा। इसलिए श्रीकृष्ण ब्राह्मण वेश में बर्बरीक को रोकने चल दिए। बर्बरीक को रास्ते में ब्राह्मण वेश में रोकते हुए उन्होने बर्बरीक से रणभूमि की ओर जाने का प्रयोजन पूछा। जिसका जवाब सुन ब्राह्मण भेषधारी श्री कृष्ण ने बर्बरीक का मजाक बनाया और कहा कि क्या वो केवल तीन बाणों से युद्ध लड़ेंगे। तब बर्बरीक ने उत्तर दिया कि केवल एक बाण ही पूरी शत्रु सेना को मार गिराने के लिए पर्याप्त है। साथ ही ये बाण कार्य पूरा करने के बाद अपने तरकस में वापस भी आ जाएगा।

और यदि तीनों बाणों को प्रयोग में लाया गया तो तीनों लोगों में हाहाकार मच जाएगा। लेकिन ब्राम्हण भेषधारी कृष्ण ने इस बात पर भरोसा ना करते हुए कहा कि अगर ऐसा है तो तुम इस पीपल के पेड़ के सारे पत्तों को एक ही बाण से भेदकर दिखाओ, जिसके नीचे हम दोनों खड़े हैं। बर्बरीक ने इस चुनौती को स्वीकार करते हुए तरकश से एक बाण निकालकर ईश्वर को यादकर चला दिया। उस बाण ने क्षणभर में ही सारे पीपल के पत्तों को भेद दिया और श्रीकृष्ण के पैरों के इर्द-गिर्द नाचने लगा। दरअसल, श्रीकृष्ण ने एक पीपल के पत्ते को पैरों के नीचे छुपा लिया था। जिसकी वजह से वो बाण अपने लक्ष्य को पूरा करने के लिए ही वहां मंडरा रहा था। इस पर बर्बरीक ने उन्हें पैर को हटाने लेने का आग्रह किया और कहा कि इस बाण से आपके पैर को भी चोट पहुंच सकती है।

ब्राम्हण भेष में पहुंचे श्रीकृ्ष्ण ने बर्बरीक से दान की मांग की। जिसके उत्तर में बर्बरीक ने यथासंभव दान देने की बात का वचन दिया। बर्बरीक के वचन देते ही कृष्ण ने बर्बरीक से सिर का दान करने को कहा। इस पर बर्बरीक ने ब्राह्मण वेषधारी कृष्ण से असली रूप में दर्शन देने का आग्रह किया। तब श्रीकृष्ण ने उन्हें चतुर्भुज रूप के दर्शन दिए। कृष्ण ने समझाया कि युद्ध शुरू होने से पहले किसी वीर क्षत्रिय के शीश की आवश्यकता होती है। तब बर्बरीक ने सिर का दान किया। लेकिन इसके साथ ही कटे सिर से पूरा युद्ध देखने की अभिलाषा व्यक्त की। तब कृष्ण ने बर्बरीक के सिर को रणभूमि के समीप ऊंचे पहाड़ की चोटी पर सिर को सुशोभित किया। वहीं से बर्बरीक के कटे सिर ने पूरे युद्ध को देखा। युद्ध के अंत में पांडवों में आपस में विवाद होने लगा कि पूरे युद्ध की विजय का श्रेय किसे जाता है। तब कृष्ण ने कहा कि बर्बरीक इस बात का निर्णय कर सकते हैं। क्योंकि उसने शुरू से युद्ध को देखा है। तब बर्बरीक के कटे सिर ने श्रीकृष्ण को युद्ध की विजय का श्रेय दिया। और कहा कि कृष्ण की बुद्धि चातुर्य और साहस, निर्णय. युद्धनीति की वजह से ही ये युद्ध निर्णायक रहा।

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