MP मध्य प्रदेश में धान का क्षेत्र और उत्पादन लगातार बढ़ता जा रहा है। इस बार रिकार्ड 45 लाख मीट्रिक टन धान समर्थन मूल्य पर खरीदा गया। इससे किसानों को तो लाभ हो गया पर सरकार की चिंता बढ़ गई है क्योंकि समय पर मिलिंग (धान से चावल निकालना) नहीं होने पर धान डंप पड़ा है। केंद्र सरकार सेंट्रल पूल में धान नहीं लेती है। पिछले सालों का पौने चार लाख टन से ज्यादा धान केंद्र सरकार लेने से मना कर चुकी है। इस स्थिति को देखते हुए प्रदेश में राइस मिल की स्थापना को लेकर प्रयास किए जा रहे हैं।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के निर्देश पर उद्योग विभाग ने प्रस्ताव तैयार किया है। इसमें नई मिल की स्थापना करने या मौजूदा मिल की क्षमता में वृद्घि करने पर मंडी टैक्स से छूट देने के साथ निवेश प्रोत्साहन नीति के तहत अन्य सुविधाएं दी जाएंगी। साथ ही मिलर को यह छूट भी रहेगी कि वो उत्तर प्रदेश, ओडिशा, छत्तीसगढ़, बिहार सहित अन्य राज्य से धान लाकर मिलिंग करता है तो वह धान भी मंडी शुल्क से मुक्त रखा जाएगा।
छोटी-बड़ी 739 राइस मिल
छोटी-बड़ी 739 राइस मिल हैं। इनमें से लगभग तीन सौ के पास शार्टेक्स प्लांट भी हैं। इससे चावल की ग्रेडिंग की जाती है। लगभग 160 मिलर ने संयंत्र अपग्रेड करने की बात कही है। खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग के अधिकारियों का कहना है कि धान का रकबा और उत्पादन जिस तरह से बढ़ रहा है, उसे देखते हुए मिलिंग की क्षमता बढ़ानी ही होगी।
कोई और विकल्प नहीं
इसके अलावा कोई और विकल्प नहीं है। वहीं, मिलिंग न हो पाने की वजह से धान खरीदने वाली एजेंसियों (नागरिक आपूर्ति निगम और राज्य सहकारी विपणन संघ) को घाटा उठाना पड़ रहा है क्योंकि केंद्र सरकार सेंट्रल पूल में धान लेने से इन्कार कर देती है। 2017-18 की एक हजार 250 और 2019-20 की तीन लाख 82 हजार टन धान पड़ा है। इसे अब सरकार नीलाम करने जा रही है। इसमें चार सौ करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान संभावित है।
सतना, कटनी सहित अन्य जगहों के मिलर से चर्चा की गई
स्थिति आगे न बने, इसके लिए नई राइस मिल के साथ मौजूदा मिलों की क्षमता वृद्घि के प्रयास किए जा रहे हैं। उद्योग विभाग के प्रमुख सचिव संजय कुमार शुक्ल ने बताया कि मुख्यमंत्री के निर्देश पर राइस मिलों की स्थापना के लिए प्रोत्साहन का प्रस्ताव तैयार किया गया है, जिसे कैबिनेट के समक्ष रखा जाएगा। इसके लिए सतना, कटनी सहित अन्य जगहों के मिलर से चर्चा की गई है।
इसमें उन्होंने सुझाव दिया कि पांच माह मिलिंग करने के बाद हमारे संयंत्र खाली रहते हैं। हमें बाहर से धान लाकर मिलिंग करते हैं तो मंडी शुल्क लिया जाता है, इससे छूट दी जानी चाहिए। विभागीय अधिकारी इससे इस शर्त के साथ सहमत हैं कि मिलर को पहले मध्य प्रदेश की धान की मिलिंग करनी होगी। नई मिल की स्थापना करने पर भी मंडी शुल्क से छूट दी जाएगी। प्रति सौ रुपये पर एक रुपये 70 पैसे मंडी शुल्क लगता है। इसके लिए निवेश प्रोत्साहन नीति के प्रविधानों के तहत भी छूट दिया जाना प्रस्तावित किया जा रहा है।