OMG दुनिया में कुछ ऐसी अजीबो-गरीब चीजें या घटनाएं होती हैं, जो लोगों के बीच हमेशा के लिए चर्चा का विषय बन जाती हैं। ऐसा ही एक रहस्य है दुनिया की सबसे बड़ी झील के ऊपर हवा में लटकते हुए पत्थर, जो लोगों के बीच चर्चा का विषय बने हुए हैं। दुनिया की इस सबसे बड़ी झील के ऊपर सर्दियों के मौसम में कई पत्थर हवा में ऐसे लटक जाते हैं, जैसे कोई पानी की बूंद हो।
इन पत्थरों को दूर से देखकर ऐसा लगता है जैसे कि ये हवा में लटक रहे हों, लेकिन अब इसका रहस्य खुल गया है। यह प्रकृति का एक अनोखा राज था जिसको इससे पहले तक कोई जान नहीं पाया था। असल में ये पत्थर बर्फ की बेहद पतली और नाजुक नोक पर टिके होते हैं। लेकिन अब वैज्ञानिकों ने इस रहस्य को सुलझा लिया है कि आखिरकार ये होता कैसे है? आइये जानते हैं इसके बारे में…
आम तौर पर पत्थरों का वजन ज्यादा होता है। पत्थर का आकार चाहे कितना भी छोटा हो वो पानी में डूब ही जाता है, लेकिन रूस के साइबेरिया में स्थित दुनिया की सबसे बड़ी झील ‘लेक बैकाल’ में सर्दियों के मौसम में एक अलग ही नजारा देखने को मिलता है। यहां पानी पर पत्थर टिके हुए नजर आते हैं।
बैकाल झील में जब सर्दियों के मौसम में बर्फ जमती है तो वो अलग-अलग आकृतियों में तब्दील हो जाती है। इसमें से एक प्रक्रिया है सब्लिमेशन, मतलब कि बर्फ का ऊपर की तरफ आ जाना। सर्दियों के समय जैसे ही तापमान नीचे गिरता है, पानी बर्फ में बदल जाता है और अगर झील के नीचे से ऊपर की तरफ किसी तरह का सब्लिमेशन होता है तो उसके ऊपर मौजूद वस्तु बाहर आ जाती है और वो हवा में लटकती हुई दिखाई देती है।
वहीं हवा में लटकते हुए पत्थर के रहस्य को लेकर NASA के एम्स रिसर्ट सेंटर के साइंटिस्ट जेफ मूर का कहना है कि ये परिभाषा गलत है कि बर्फ के जमने से ये पत्थर ऊपर टिक गए, क्योंकि झीले के अंदर तक बर्फ नहीं जमती बल्कि ऊपर जमती है। नीचे पानी का बहाव होता है और बहता हुआ पानी किसी भी भारी वस्तु को ज्यादा नहीं हिला सकता जब तक बहाव में तेजी न हो।
इसके अलावा इस बात को सिद्ध करने के लिए निकोलस टेबरले ने अपने लैब में एक एक्सपेरीमेंट किया। लैब में उन्होंने 30 मिलीमीटर चौड़े धातु की तश्तरी को बर्फ के टुकड़े के ऊपर रखकर उसे फ्रीज ड्रायर में रखा। इसके बाद हवा निकाल कर आद्रता को कम किया गया। इससे बर्फ सब्लिमेशन की प्रक्रिया शुरु कर देता है। बाद में जो नजारा देखने को मिला वो हैरान करने वाला था। उन्होंने देखा कि धातु की तश्तरी के नीचे की बर्फ सब्लिमेट नहीं कर रही थी, बल्कि उसका निचला हिस्सा 8-10 मिलिमीटर प्रति दिन की गति से सब्लिमेट हो रहा था। कुछ दिनों के बाद लैब में बिल्कुल वैसा ही नजारा बना जैसे बैकाल झील में देखने को मिलता है।
इसके बाद टेबरले और उनके साथियों ने ये निष्कर्ष निकाला कि सर्दी के मौसम में झील के ऊपर हवा और गर्मी कम होती है। इसलिए आद्रता खत्म हो जाती है और धीरे-धीरे पत्थर के नीचे की बर्फ सब्लिमेट करने लगती है। इसके बाद पत्थर एक छतरी की तरह बर्फ के ऊपर टिक जाता है। वहीं पत्थर के आसपास की बर्फ पिघल जाती है जबकि ठीक नीचे की बर्फ नहीं पिघलती है।