Paush Purnima Ma Shakmbhari Shakti Peeth: साल में एक बार मां अम्बे का होता है सब्जियों से श्रृंगार
Paush Purnima 2023: पौष पूर्णिमा पर मां शाकम्भरी के रूप में की जाती है पूजा
Paush Purnima Ma Shakmbhari Shakti Peeth: साल में एक बार मां अम्बे का होता है सब्जियों से श्रृंगार । 50 साल पहले 1970 में प्रतिमा का श्रृंगार सब्जियों से किया गया था। इसके बाद से यह परंपरा लगातार निभाई जा रही है। एक दिन पहले ही श्रद्धालु मंदिर में सब्जियां लेकर आ जाते हैं। पौष पूर्णिमा पर सुबह सब्जियों से श्रृंगार किया जाता है छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के सत्ती बाजार स्थित अम्बा देवी मंदिर में मां अम्बे की प्रतिमा का साल में एक बार सब्जियों से श्रृंगार किया जाता है।
यह श्रृंगार हिंदू संवत्सर के पौष माह की पूर्णिमा तिथि पर किया जाता है। अंग्रेजी नववर्ष 2023 में पौष पूर्णिमा 6 जनवरी को पड़ रही है। इस दिन सभी तरह की शाक-सब्जियों का भोग अर्पित करके श्रृंगार किया जाएगा। अम्बा मंदिर के पुजारी पंडित पुरुषोत्तम शर्मा के अनुसार श्रद्धालु कच्ची हरी सब्जियां माता को अर्पित करते हैं। इन्हीं सब्जियों से श्रृंगार करके दूसरे दिन प्रसाद के रूप में वितरित कर दिया जाता है।
श्रद्धालु अर्पित करते हैं सब्जियां
अम्बा मंदिर के पुजारी पंडित पुरुषोत्तम शर्मा के अनुसार मंदिर में प्रतिष्ठापित प्रतिमा की पूरे साल मां अंबे के रूप में पूजा की जाती है, लेकिन पौष पूर्णिमा पर देवी प्रतिमा को शाकंभरी देवी के रूप में पूजा जाता है। लगभग 50 साल पहले 1970 में प्रतिमा का श्रृंगार सब्जियों से किया गया था। इसके बाद से यह परंपरा लगातार निभाई जा रही है। एक दिन पहले ही श्रद्धालु मंदिर में सब्जियां लेकर आ जाते हैं। पौष पूर्णिमा पर सुबह सब्जियों से श्रृंगार किया जाता है। सुबह 8 बजे के बाद सब्जियाें से किया गया श्रृंगार का दर्शन पट खोला जाता है। भक्तगण दिन में भी जैसे-जैसे सब्जियां अर्पित करते हैं, श्रृंगार का स्वरूप भी बदला जाता है।
आठ दिन मनाते हैं शाकम्भरी उत्सव
पौष मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से शाकंभरी पर्व की शुरुआत हुई है, पूर्णिमा तक उत्सव मनाया जाएगा। अंतिम दिन भाजी और शाक-सब्जियों सेदेवी प्रतिमा का श्रृंगार किया जाएगा।
कमल फूल पर मां
देवी शाकंभरी को दुर्गा का अवतार माना जाता है। मां शाकंभरी का वर्ण नीला है, नील कमल के सदृश ही इनके नेत्र हैं। ये कमल पुष्प पर विराजती हैं। मां एक हाथ में कमल का फूल और दूसरे में बाण धारण करतीं हैं।
दुर्गम दैत्य के प्रकोप से धरती को बचाया
पौराणिक कथा के अनुसार एक समय भूलोक पर दुर्गम नामक दैत्य के प्रकोप से 100 साल तक बारिश नहीं हुई। अन्न-जल की कमी से प्रजा में हाहाकार मच गया। दुर्गम नामक दैत्य ने देवताओं से चारों वेद चुरा लिए थे। देवी शाकंभरी ने दुर्गम नामक दैत्य का वध किया और देवताओं को वेद लौटाए।
100 आंख वाली देवी
ऐसी मान्यता है कि देवी शाकंभरी की 100 आंखें हैं। देवी ने अपने सभी नेत्रों से देवताओं की ओर देखा। धरती में हरियाली छा गई। नदियां लबालब भर गई। पेड़ों पर फल लग गए। मां देवी ने शरीर से पैदा हुए शाक से संपूर्ण धरती का पालन-पोषण किया। इसी वजह से देवी का सब्जियों से श्रृंगार करके सब्जियों का भोग अर्पित किया जाता है।