Pitru Paksha 2021 । भारत ही एकमात्र ऐसा देश है जहाँ वर्ष का प्रत्येक दिन व्रत पर्व तथा उत्सव का हेतू है। हमारे मनीषियों ने न केवल मानव मनोविज्ञान अपितु उसके दैहिक स्वास्थ्य संबंधी आवश्यकताओं पर्यावरणीय अनुकूलता तथा ऋतुगत जलवायु परिवर्तनों को दृष्टि में रखकर पर्वोत्सवों तथा उनसे सम्बन्धित कर्मकांड को निर्धारित कर धार्मिक विश्वासों के साथ परिवर्तित किया। इन विश्वासों तथा परम्पराओं में न केवल धर्मभीरु मानव अपनी अदृष्ट सुरक्षा देखता है अपितु समस्याओं एवं विषमताओं से आहत जीवन में उल्लास की ऊर्जा प्राप्त कर नई जीवनी शक्ति प्राप्त करता है।
भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से आश्विन कृष्ण अमावस्या तक प्राय: प्रत्येक हिन्दू परिवार में पितृ तर्पण और पंचग्रासी निकालने की परम्परा है। पितृपक्ष में परंपरागत रूप से श्राद्धादि कर्मकांड तथा उनके निमित्त घर घर में किये जाने वाले होम यज्ञ में अन्नादि की आहुतियां दी जाती है। इस अवधि में आवश्यक अनुष्ठान के रूप में दक्षिणाभिमुख होकर तिल व जल द्वारा तर्पण जलाञ्जलि दी जाती है। स्वर्ण पदक प्राप्त ज्योतिषाचार्य डॉ. पंडित गणेश शर्मा ने बताया कि इस वर्ष श्राद्ध पक्ष 20 सितंबर से प्रारंभ हो रहे है जो कि 6 अक्टूबर को सर्व पितृ मोक्ष अमावस्या को पितरों की विदाई के साथ समाप्त होंगे 20 सितंबर को भाद्र पक्ष पूर्णिमा का श्राद्ध है।
अश्विन प्रतिपदा 21 सितंबर को एकम तिथि का श्राद्ध 22 सितंबर को द्वितीय तिथि का श्राद्ध 23 सितंबर को तृतीया तिथि का श्राद्ध 24 सितंबर को चतुर्थी तिथि का श्राद्ध 25 सितंबर को पंचमी तिथि का श्राद्ध 26 सितंबर को तर्पण होगा पर श्राद्ध नही है 27 सितंबर को भी षष्ठी तिथि का श्राद्ध है इस दिन षष्ठी तिथि रहेगी 28 सितंबर को सप्तमी का श्राद्ध 29 सितंबर को अष्टमी तिथि का श्राद्ध है है 30 सितंबर को नौमी तिथि का श्राद्ध है 1, अक्टूबर को दशमी तिथि का श्राद्ध है 2 अक्टूबर को एकादशी तिथि का श्राद्ध है 3 अक्टूबर को द्वादशी तिथि का श्राद्ध है 4 अक्टूबर को तरोदशी तिथि का श्राद्ध है 5 अक्टूबर को चतुर्दशी का श्राद्ध है 6 अक्टूबर को अमावस्या पर सर्व पितृ मोक्ष अमावस का श्राद्ध है इस दिन पितरों की विदाई होगी
उल्लेखनीय है कि यही काल है जब सूर्य द्वारा अगले वर्ष की वर्षा हेतु समस्त पार्थिव स्रोतों से जल आहरण करने की प्रक्रिया आरम्भ होती है। यह मेघों का गर्भाधान काल होता है। सूर्य अपनी रश्मियों से सूक्ष्म ऊष्मा के रूप में जल ग्रहण करता है। इस दृष्टि से भी तर्पण हेतु किया गया जलदान उक्त कार्य में साधक होता है। चंद्रलोक के ऊपर जिस पितृलोक की कल्पना की गई है वह अंतरिक्ष का वह क्षेत्र प्रतीत होता है जहाँ ऊष्मा के रूप में जल संग्रहित होता है। सांस्कृतिक रूप से दिवंगत पूर्वजों के प्रति श्रद्धाभाव व्यक्ति के समक्ष एक आदर्श परंपरा के निर्माण के दायित्व का बोध कराता है। इनका उल्लेख वेदों, पुराणों, उपनिषदों और स्मृतियों, शतपथ ब्राह्मण आदि धर्म शास्त्रों में भी किया गया है।
व्यक्ति का कर्तव्य है श्राद्ध
देवता तथा पितरों के कार्यों में आलस्य नहीं करना चाहिये। पितरों का कार्य अर्थात श्राद्ध। पिता धर्म: पिता कर्म के अनुसार जीवित माता पिता की अत्यंत श्रद्धा के साथ सेवा करना तथा मृत माता-पिता का श्राद्ध करना पुत्र का स्वधर्म है जिसे करना ही चाहिए। श्राद्ध तो प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य है साथ में इसका परिणाम भी सुन्दर है। श्राद्ध करने वाला परम पद को प्राप्त हो जाता है।
श्रद्धा से ही श्राद्ध शब्द की निष्पत्ति होती है।
सामान्य श्राद्ध की दो प्रक्रिया है- पिंडदान तथा ब्राह्मण भोजन। अथर्ववेद में आया है कि ब्राह्मणों को भोजन कराने से वह भोज्य पदार्थ पितरों को प्राप्त हो जाता है। शरीर छूटने के बाद पितरों का शरीर सूक्ष्म हो जाता है वह सूक्ष्म शरीर आमंत्रित ब्राह्मण शरीर में समाविष्ट होकर श्राद्धान्न को ग्रहण करता है।
श्राद्ध के बारह प्रकार मिलते है
नित्य, नैमित्तिक, काम्य, वृद्धि, पार्वण, सपिण्डन, गोष्ठी, शुद्ध्यर्थ, कर्मांग, दैविक, यात्रार्थ, पुष्ट्यर्थ आदि।
भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से पितरों का दिन प्रारम्भ होता है। पितरों के लिये कृष्ण पक्ष दिन है तथा शुक्ल पक्ष रात्रि है इसीलिए तो कृष्ण पक्ष पितृ पक्ष कहलाता है।
गृहस्थ को अवश्य ही माता-पिता, कुटुंब, परिवार के किसी भी सदस्य की मृत्यु होने पर मलिन षोडशी, आद्य श्राद्ध, प्रेत शय्यादान, मध्यम षोडशी, उत्तम षोडशी, सपिण्डीकरण, श्री लक्ष्मीनारायण शय्यादान, ब्राह्मण भोजन आदि श्राद्ध शास्त्रों के निर्देशानुसार अवश्य करना चाहिए।
होता है समस्याओं का समाधान
श्राद्ध करके सब कुछ प्राप्त किया जा सकता है। यदि शरीर अचानक रुग्ण हो गया, औषधियां ली जा रही हैं पर व्याधि ठीक नहीं हो रही है। दुस्वप्न दिखता है अचानक दुर्घटना घटती जा रही है। सब कुछ ठीक रहने पर भी संतान नहीं हो पा रही है व्यापार नहीं चल रहा है मन में अशांति बनी रहती है। इन सभी के निवारणार्थ शास्त्रों में त्रिपिंडी श्राद्ध करने का विधान बताया गया है।