चीन के मंगल अंतरिक्षयान के रोवर ‘चुरोंग’ ने शनिवार को मंगल ग्रह पर उतरने में सफलता पायी। चीन के राष्ट्रीय अंतरिक्ष प्रबंधन ने यह जानकारी दी है। मंगल ग्रह पर सफलतापूर्वक अपना रोवर उतारने वाला चीन दुनिया का दूसरा देश बन गया है। इससे पहले यह कारनामा अमेरिका ने किया था।
चीन के अंतरिक्षयान का नाम तियानवेन-प्रथम है जो पिछले साल जुलाई में प्रक्षेपित हुआ था। इसमें जो रोवर मौजूद हैं, उसे ‘चुरोंग’ नाम दिया गया है। इस रोवर का नाम चीन के पौराणिक अग्नि और युद्ध के देवता के नाम के ऊपर चुरोंग रखा गया। जो मंगल की सतह पर उतरकर मंगल की जलवायु और भूविज्ञान पर काम करेगा।
छह पहियों वाला रोवर: रोवर एक छोटा अंतरिक्ष रोबोट होता है जिनमें पहिए लगे होते हैं। चुरोंग छह पहियों वाला रोवर है। यह मंगल के यूटोपिया प्लेनीशिया समतल तक पहुंचा है जो मंगल ग्रह के उत्तरी गोलार्ध का हिस्सा है। चीन ने इस रोवर में एक प्रोटेक्टिव कैप्सूल, एक पैराशूट और रॉकेट प्लेफॉर्म का इस्तेमाल किया है।
मंगल से तस्वीरें भेजेगा: यूटोपिया प्लेनीशिया से चीन का यह रोवर मंगल ग्रह की तस्वीरें भेजेगा। चीनी इंजीनियर इस पर लंबे समय से काम कर रहे थे। मार्स की वर्तमान दूरी 32 करोड़ किलोमीटर है, इसका मतलब यह हुआ कि पृथ्वी तक रेडियो संदेश पहुंचने में 18 मिनट का वक्त लगेगा।
90 दिनों तक सूचना भेजता रहा तो सफल: अगर चुरोंग मंगल ग्रह से अगले 90 दिनों में सूचनाओं को जुटाने और भेजने के मिशन में कामयाब रहता है तो चीन अमेरिका के बाद दुनिया का दूसरा देश होगा, जिसके नाम यह कामयाबी होगी।
मंगल से तस्वीरें भेजेगा: यूटोपिया प्लेनीशिया से चीन का यह रोवर मंगल ग्रह की तस्वीरें भेजेगा। चीनी इंजीनियर इस पर लंबे समय से काम कर रहे थे। मार्स की वर्तमान दूरी 32 करोड़ किलोमीटर है, इसका मतलब यह हुआ कि पृथ्वी तक रेडियो संदेश पहुंचने में 18 मिनट का वक्त लगेगा।
90 दिनों तक सूचना भेजता रहा तो सफल: अगर चुरोंग मंगल ग्रह से अगले 90 दिनों में सूचनाओं को जुटाने और भेजने के मिशन में कामयाब रहता है तो चीन अमेरिका के बाद दुनिया का दूसरा देश होगा, जिसके नाम यह कामयाबी होगी।
अमेरिका से होड़ के बीच सफलता: चुरोंग रोवर को मंगल पर उतारने में चीन को तब सफलता मिली है, जब अमेरिका के साथ वैश्विक तकनीकी नेतृत्व को लेकर होड़ चल रही है। अंतरिक्ष विज्ञान में अमेरिका की ऐतिहासिक उपलब्धियां हैं लेकिन अब चीन भी उसे चुनौती दे रहा है।
अपना अंतरिक्ष केंद्र बना रहा चीन: हाल के सालों में चीन ने दुनिया का पहला क्वॉन्टम उपग्रह छोड़ा था। इसकी मून पर लैंडिंग हुई थी और लूनर सैंपल हासिल करने में कामयाबी मिली थी। चीन अपना स्पेस स्टेशन भी बना रहा है।
‘चुरोंग’ लाल ग्रह की सतह पर उतरने वाला सबसे भारी यान
चीन शनिवार सुबह मंगल पर किसी यान की ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ में सफलता हासिल करने वाला दुनिया का तीसरा देश बन गया। उसका ‘चुरोंग’ लैंडर लाल ग्रह की सतह पर उतरने वाला अब तक सबसे वजनी यान बताया जा रहा है। वहीं, मंगल पर सबसे लंबे समय तक सक्रिय रहने की बात करें तो यह रिकॉर्ड नासा के ‘ऑपर्च्युनिटी’ यान के नाम दर्ज है।
सोवियत संघ के हाथ लगी पहली कामयाबी
-28 मई 1971 को अंतरिक्ष की उड़ान भरने वाला तत्कालीन सोवियत संघ का ‘मार्स-3’ लैंडर लाल ग्रह की सतह पर उतरने वाला दुनिया का पहला यान था।
-02 दिसंबर 1971 को मंगल पर ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ में पाई सफलता, हालांकि, सिर्फ 110 सेकेंड के लिए सक्रिय रह सका, इस अवधि में एक ब्लैक एंड व्हाइट तस्वीर भेजी।
-1210 किलोग्राम था लैंडर का वजन, ऑर्बिटर 3440 किलोग्राम वजनी था, ‘मार्स-3’ ऑर्बिटर ने आठ महीने मंगल की कक्षा में चक्कर लगाया, अहम डाटा साझा किया।
अमेरिका के ‘वाइकिंग-1’ ने रचा इतिहास
-20 अगस्त 1975 को मंगल के सफर पर निकला ‘वाइकिंग-1’, 20 जुलाई 1976 को सतह पर रखा कदम, 2307 दिन सक्रिय रहकर कई दुर्लभ तस्वीरें भेजीं।
-लाल ग्रह पर जीवन के सुराग खोजने में नाकाम रहा यान, पर उसे कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन, फॉसफोरस जैसे तत्व मिले, जो जीवन की उत्पत्ति के लिए जरूरी।
-572 किलो लैंडर तो 883 किलो था ऑर्बिटर का वजन, 11 नवंबर 1982 को ग्राउंड कंट्रोल की ओर से भेजे गए एक गलत कमांड के चलते लैंडर से संपर्क टूट गया
ये मंगल मिशन भी सफल रहे।
-वाइकिंग-2 : 1316 दिन सतह पर सक्रिय रहा, आयरन, सिलकॉन, मैग्नीशियम, सल्फर, एल्युमिनियम, कैल्शियम और टाइटैनियम की मौजूदगी की पुष्टि की, 12 अप्रैल 1980 को बैटरी के निष्क्रिय होने के कारण ठप पड़ा।
-मार्स पाथफाइंडर : 04 जुलाई 1997 को लाल ग्रह पर कदम रखा, इसका ‘सोजोर्नर’ रोवर धरती-चंद्रमा से इतर किसी खगोलीय पिंड पर घूम-घूमकर वैज्ञानिक शोध को अंजाम देने वाला दुनिया का पहला रोवर था, 95 दिन सक्रिय रहा।
-ऑपरच्युनिटी : 25 जनवरी 2004 को मंगल की सतह छुई, सर्वाधिक 5250 दिन सक्रिय रहने का रिकॉर्ड दर्ज, ‘हीट शील्ड रॉक’ सहित कई उल्कापिंडों की खोज की, कई ऐसी चट्टानों के अस्तित्व से पर्दा उठाया, जिनमें अतीत में पानी मौजूद रहा होगा।
-फीनिक्स : 25 मई 2008 को मंगल के ध्रुवीय क्षेत्र में उतरने वाला पहला यान बना, ग्रह पर बर्फीली चट्टानों की मौजूदगी के संकेत दिए, मिट्टी के अम्लीय होने की पुष्टि की, मैग्नीशियम-पोटैशियम जैसे खनिज खोजे, 10 नवंबर 2008 को संपर्क टूटा।
-इनसाइट : 26 नवंबर 2018 को मंगल के दूसरे सबसे बड़े ज्वालामुखीय क्षेत्र में लैंडिंग, लगातार 901 दिन से सक्रिय, भूकंपीय गतिविधियों के अध्ययन के लिए ‘सीसमोमीटर’ तैनात करना मकसद, ताकि ग्रह की उत्पत्ति के रहस्यों से पर्दा उठाने में मदद मिले।
-पर्सिवरेंस : मंगल पर मौजूद ‘जेजेरो’ नाम के गड्ढे के अध्ययन के लिए 18 फरवरी 2021 को सतह पर उतरा, इस गड्ढे के एक समय में पानी से भरा होने का अनुमान है, ‘इंगेन्युटी’ नाम के हेलीकॉप्टर से लैस, जिसने ग्रह पर पहली सफल उड़ान भर रचा इतिहास।
चीन का ‘चुरोंग’ 13 वैज्ञानिक उपकरणों से लैस
-05 टन वजन वाला ‘चुरोंग’ मंगल की सतह पर सफल ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ करने वाला अब तक का सबसे भारी यान, 13 विशाल वैज्ञानिक उपकरणों से लैस, तीन महीने सतह पर रहने का लक्ष्य।
-मंगल की अंदरूनी सतह के अध्ययन के साथ ही वहां पानी की मौजूदगी के निशान ढूंढना, उपलब्ध खनिजों और चट्टानों की संरचना के अलावा पर्यावरण को समझने में मदद करना मकसद।
भारत भी तैयारी में
-05 नवंबर 2013 को भारत ने मार्स ऑर्बिटर मिशन (मॉम) नाम का अंतरिक्ष यान लाल ग्रह रवाना किया, 24 सितंबर 2014 को मंगल की कक्षा में पहुंचा।
-पहले ही प्रयास में यह उपलब्धि हासिल करने वाला दुनिया का पहला देश बना भारत, 450 करोड़ रुपये की लागत के चलते यह सबसे सस्ता मंगल मिशन।
-मंगल के चंद्रमा ‘फोबोस’ और ‘डेमोस’ को कैमरे में करीब से कैद किया, वहां आने वाले धूल के तूफान के सैकड़ों किलोमीटर ऊपर तक उठने के संकेत दिए।
-2022 में इसरो अपने दूसरे मंगल मिशन ‘मंगलयान-2’ पर काम शुरू करेगा, इसका मकसद लाल ग्रह पर जीवन की उत्पत्ति के जरूरी तत्वों की खोज करना है।