Tulsi Vivah: आज कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि है, इस दिन देवउठनी एकादशी है। देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी विवाह होता है।
इस दिन तुलसी का भगवान शालिग्राम के साथ विधि विधान से विवाह कराया जाता है। तुलसी विवाह के दिन हम आपको तुलसी और गणेश जी से जुड़ी एक कथा बताने जा रहे हैं, जो तुलसी के विवाह प्रस्ताव से जुड़ा है। आइए पढ़ते हैं यह पौराणिक कथा।
तुलसी करना चाहती थीं गणेश जी से विवाह
एक बार माता तुलसी अपने विवाह की मनोकामना की पूर्ति से तीर्थ यात्रा कर रही थीं। उसी दौरान भगवान गणेश जी गंगा के तट पर तप में लीन थे। इधर माता तुलसी एक एक कर के सभी तीर्थ स्थलों का भ्रमण करती हुई गंगा के उसी तट पर पहुंच गईं, जहां पर विघ्नहर्ता श्री गणेश जी तप में लीन थे। गणेश जी को तप में लीन देखकर माता तुलसी उन पर मोहित हो गईं। उन्होंने गणेश जी का ध्यान भंग कर दिया और उनसे विवाह करने का प्रस्ताव रखा। इस पर गणेश जी क्रोधित हो गए। उन्होंने कहा कि वे ब्रह्मचारी हैं, वे विवाह नहीं कर सकते।
तुलसी ने गणेश जी को दिया श्राप
गणेश जी से विवाह का प्रस्ताव ठुकराए जाने से माता तुलसी क्रोधित हो गईं और उन्होंने गणेश जी को श्राप दे दिया कि उनका दो विवाह होगा। वे दो पत्नियों के स्वामी बनेंगे। बाद में ऋद्धि और सिद्धि उनकी दो पत्नियां बनीं। श्राप के कारण उनका दो विवाह हुआ।
गणेश पूजा में वर्जित हो गईं तुलसी
तुलसी के इस श्राप से गणेश जी फिर क्रोधित हो गए और माता तुलसी को शंखचूड़ नाम के असुर से विवाह होने का श्राप दे दिया। एक राक्षस की पत्नी बनने का श्राप पाकर माता तुलसी ने अपनी गलती के लिए क्षमा याचना की। तब गणेश जी ने उनको आशीर्वाद दिया कि वे भगवान विष्णु तथा श्रीकृष्ण की प्रिय होंगी। कलयुग में तुलसी लोगों के लिए जीवनदायनी होंगी। साथ ही गणपति ने कहा कि आज से उनकी पूजा में तुलसी वर्जित रहेंगी। उनकी पूजा में तुलसी का प्रयोग नहीं होगा।